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( ) •8. अथ श्री संबपट्टका - . . टीकाः-सुविहितमुनिचक्रवाल शिखामणिः सिद्धांतविपर्यस्तप्ररूपणमहांधकारनिकारतरणिःसुगृहीतनामधेयःप्रणतप्राणि..संदोह वितीर्य शुनजागधेयः ॥ .
अर्थः-(तथा) सुविहित मुनिना समूहमां चूमामणि समान, अने सिकांतनी अवळी प्ररूपसा करवारूप मोटा अंधारानो नाश करवामां सूर्य समान, तथा सुंदर ग्रहण करवा योग्य नाम डे जेनुं एवा, तथा नमस्कार करनार प्राणीना समूहने शुन लाग आपनार अर्थात तेमनु हित करनार एवा.
टीका:-चैत्यवासदोषनासनसिकांताकर्णनापासितकृतचतुगतिसंसारायासजिननवनवासः ।।
अर्थः-ने चैत्यवासना दोषने प्रकाश करनार सिद्धांतना सांनळवाथी चार गति संसारमा जगण करवारूप खेद, जेथी थाय एवो चैत्यवास जेणे त्याग कयों ठे एवा.
टीकाः-सर्वशासनोत्तमांगस्थानादिनवांगवृत्तिकृत्रीमदनयदेवसूरिपादसरोजमूले गृहीतचारित्रोपसंपत्तिः॥ ...अर्थः-ने जिन शासनना उत्तम अंग (मस्तक) समान जे स्थानांग आदि नव अंग तेमनी वृत्ति करनार श्री अन्नयदेवसूरिना चरण कमल समीपे जेणे चारित्र संपदा नहरा कररी एवा.
टीकाः करुणासुधातरंगिणीतरंगरंगत्स्वांतःसुविधिमार्गावनासनप्रापुषधिशदकीर्तिकौमुदीनिषूदितदिक्सीमंतिनीवदनध्वांतः ॥