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________________ (२६६ ) . अथ श्री संघपट्टक mamminemam - M nawane अर्थ:-तेमां जो प्रथम पदनो अंगिकार करो त्यारे तो गणधरना न्यायने अनुसारे तमारे पण राजाएं आपेला सिंहासनने विषेज वेशीने व्याख्यान करवानो प्रसंग श्रावशे. ने वळी बीजो पदा, जे राजाए आपेढुं ने वीजाए पण आपेढुं एवा पदनो अंगिकार करंशो तो तेमां पण वे विकल्प के जे शुं राजा विना वीजा लोके श्रापे के अहो पोताने अर्थे करावीने एटलें यतिने अर्थे करावीने वीजा लोके आप्युं राजाए पोते आपेढुं. टीका:-न तावदायः ॥ राजव्यतिरिक्तलोकानां सिंहासना जावेनतअपनीतत्वानुपपत्तेः ॥ नृपासनंविनाऽन्यस्यानिधान कोशादिषुसिंहासनव्यपदेशासिझैः ।। नृपासनंयत्तनासनसिंहासनंचतदितिवचनात् ।। अन्यत्रतु तद्रव्यपदेशस्य लाक्तत्वात्।। ननुन्नवत्वग्निर्माणवकश्त्यादौ सर्वथातदाकारधारणतदर्थक्रिया कारित्वादिविरहेण कतिचित्तद्गुणयोगादग्निशब्दस्य माणवकेन्नाक्तत्व मिहतुमात्रयापिताधरहानावेन सकल तशुणोपपत्तेः कर्थनाक्तत्वं । अर्थ-तेमां प्रथमनो विकल्प जे राजा बिना वीजा लोके आपेखें तो राजा बिना वीजा लोकोने सिंहासन होय नहीं माटे तेणे आपेढुं एवात केम सिह थाय ने राजासन बिना वीजा सिंहासन एवं नाम अनिधान कोशादिकने विष लिक कर्यु नथी.॥ केमजे ते कोशनुं वचन आ प्रकार जे राजानुं श्रासन ते जप्रासनं कहीए तथा सिंहासन कहीए ए हेतु माटे नेवीजी जगाए ते सिंहासन नाम कहेवाय ने ते तो लाक्षणिक , एटंसे मुख्य
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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