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जय श्री संपटक *-_(२६६)
अय श्री संघपट्टक
मां प्रसिद्ध रू आदि वस्तुए नरेलु जे श्रासन विशेष ते गादी कहीए. आदि शब्दथी मशरूनी तलाश सिंहासन इत्यादिकनुं ग्रहण करवं. एणे करीने जे पूर्वे 'नाणाहि' इत्यादि आगम वचननुं वळ लइने प्रवचन, प्रनावक अंगपणे यतिने गादी सिंहासन प्रा. दिक आसन उपर वेसवानुं प्रतिपक्षीए प्रतिपादन कर्यु हतुं ते सर्वे पण सुखशीलीयापणानो विलास बे.
टीका:-तथाहि किं यतेमहाहगब्दिकाद्यासनोपवेशनमेव प्रवचनप्रसिद्धसम्यग्ज्ञानादित्रयानिव्यंजनं ? न ताववदायः॥ श्दानीतनरूढ्या निर्गुणस्य कस्यचिदनागमज्ञस्याचार्यादेःसदसि व्याचिख्यासया महाहासनोपवेशनेपि प्रवचनप्रजावनाया अ. नुपपत्तेः प्रत्युत तादृशस्तस्य तथाभूतासनमध्यासीनस्य केनापि तर्ककर्कशवाग्जबिशख्यितारातिकोविदेन प्रतिवादिना क्षिप्तस्य स हृदय ह्रदयंगम प्रतिवचनानावेन महाप्रवचन लाघवापादनात् ॥
अर्थः-तेज प्रतिपादन करे ये जे यतिने मोटा मोटा मूलनी गादी श्रादिक आसन उपर वेस, एज प्रवचननी प्रनावनातुं अंग ने के प्रवचनमा प्रसिद्ध एवं सम्यग् ज्ञान दर्शन चारित्र ए त्रणनो प्रकाश करवो ए प्रवचननी प्रजावनानुं अंग दे तेनो नत्तर वोखं तेमां प्रथमनो पक्ष ते तो अंगिकार करवा योग्य नथी. केम जे श्रा काळनी रुढीए कोइक आचार्य आदिक ते आगमनो अजाण ने गुणरहित के तेने सजामां व्याख्यान कराववानी श्चाए मोटा मोटा मूलना शासन नपर.वेसारीए तो पण प्रवचननी प्रनावना तेथी थइ शकती