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________________ 9. अथ श्री संघपट्टक . an अने श्रावकोने थूकवा वगेरेनी मनाई करवामां आवे ने एम निश्रारहित विधिए करेला वीरप्रजुना आ चैत्यालय माटे फरमान करवामां आवे . इह न खलु निषेधः कस्यचि बंदनादौ, श्रुतविधि बहुमानी त्वत्र सर्वाधिकारी; त्रिचतुरजन दृष्ट्या चात्र चैत्यार्थ वृद्धि, व्यय विनिमय रक्षा चैत्य कृत्यादि कार्य भावार्थ:-इहां कोइने पण दर्शन पूजन करवा माटे ना पानवामां श्रावनार नथी; वळी सूत्रनी विधिने भान आपनार हरको माणसने इहां अधिकारी तरीके गणवामां आवशे; तेमन था देरासरना पैशाने त्रण चार जणानी नजर हेठे व्याजे धीरी वधारवा, खरचवा, उथल पाथल करवा, संचाळी राखवा, तथा देरासरना कामकाज करवानुं फरमाववामां आवे . आबे श्लोकपरथी खुब्बु जणाय डे के तेमणे बहुज महापण जरेला नियमो त्यां कोतराव्या . आ रीते श्रा संघपटक नामनो ग्रंथ रचवामां आव्यो तथा चीतोममा विधि चैत्य नहुँ थयुं एटले श्री जिनवजसू रिपर चैत्यवासि अतिशय गुस्से यश पांचसो जण लाकमोनल तेमने मार मारवा तेमना मुकामे आव्या, परंतु चीतोमना राणाए तेमने तेम . करतां अटकाव्या. तेम उतां जिनवाजसरिए हिम्मत राखो श्राखो मारवाममा
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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