________________
तीर्थकर चरित्र
स्वप्नपाठकों से स्वप्न का फल सुनकर सब प्रसन्न होगये। दोनों महाराानयाँ अपने-अपने गर्भ का विधिवत् पालन करने लगी।
गर्भकाल पूर्ण होने पर महारानी विजयादेवी ने माघ शुक्ला भष्टमी की रात्रि में लोकोत्तम पुत्ररत्न को जन्म दिया । बालक के जन्मते ही तीनों लोक में दिव्य प्रकाश फैल गया । इन्द्रों के आसन चलायमान हो गये। आकाश में देव दुंदुभियाँ बजने लगीं । भगवान के जन्म का समाचार पाकर छप्पन दिग्कुमारिकाएँ आई और भगवान को तथा उनकी माता को प्रणाम कर अपने-अपने कार्य में लग गई। चौसठ इन्द्रों ने तथा असंख्य देवी देवताओं ने भगवान का जन्मोत्सव किया ।
भगवान के जन्म के थोड़े काल के बाद ही युवराज्ञी वैजयन्ती ने भी एक दिव्य बालक को जन्म दिया। पुत्र और भतीजे के जन्म की बधाई पाकर महाराज जितशत्रु बड़े प्रसन्न हुए । पुत्र जन्म की खबर सुनाने वाले को महाराज ने खूब दान दिया । बन्दीजनों को मुक्त किया और सारे नगर भर में उत्सव मनाने का आदेश जारी किया । प्रजा ने भी अपने भावी सम्राट् का दिल खोल कर उत्सव किया । ___शुभ मुहूर्त में पुत्र का नामकरण किया गया। महारानी विजयादेवी के गर्भ के दिनों में महाराजा के साथ पासे के खेल में सदा महारानी की ही विजय होती थी। इस जीत को गर्भ का प्रभाव मानकर वालक का नाम अजितकुमार एवं युवराज्ञी के पुत्र का नाम सगर रक्खा गया ।
__ अजितकुमार जन्म से ही तीन ज्ञान के धारक थे । अतः उनको पढ़ाने की कोई अवश्यकता नहीं रही किन्तु सगरकुमार अध्यापक के पास रहकर अध्ययन करने लगे । सगरकुमार की बुद्धि बड़ी तीक्ष्ण थी। उन्होंने अल्प समय में ही समरत कलाओं में निपु