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जगतीतल पर भी वे नर श्रेष्ठ हैं जो स्वयं सत्य, शिव और सुन्दर स्वरूप ज्योतिर्मयो भाभा से अलंकृत हैं और अपने प्रकाशपूर्ण व्यक्तित्व के द्वारा कोटि कोटि जनगण का मार्ग प्रदर्शन करते हैं । वे चन्द्र सूर्य से कई गुने अधिक महान् हैं। किन्तु ऐसे नरोत्तम तो बहुत कम पाये जाते हैं अधिकतर तो राहु-केतु के साथी ही मिलेंगे जो स्वयं बुराइयों एवं विकृतियोंसे तमसावृत हैं तथा औरोंको भी ऐसे ही बनाने में लगे हुए हैं । हां, कहीं कहीं ऐसे सरल व्यक्तित्व भी मिल सकते हैं जो सितारों के समान स्वयं कर्तन्यरत, श्रद्धा और ज्ञान के आलोक से भालोकित हैं किन्तु वे अपने भागे पीछे बहुत दूर दूर तक फैले अज्ञान अन्धकार को नहीं मिटा पाते ।
निस्सन्देह प्रथम श्रेणी के महामानव नितान्त उपास्य हैं, क्योंकि वे उत्तम हैं। वे युग-प्रवर्तक महान् व्यक्तित्व दैहिक दृष्ट्या विलीन हो भी आये, तदपि उनके महान भादर्श और उत्तम चरित्र युग युग तक श्रोतव्य, मन्तव्य और अनुकरणीय होते हैं ।।
राहु केतु के तुल्य नर-पिशाचों के चरित्र तो हैं ही। हाँ, सितारों के तुल्य सामान्यतया अच्छे जीवन समादरणीय अवश्य है।
यह बात पहले कही जा चुकी है कि हम अतीत को नितांत विस्मृत नहीं कर सकते । क्योंकि उससे प्रेरणा लेकर ही भविष्य की उज्ज्वल कल्पनाओं को वर्तमान में देख सकते हैं । इस तरह जब हम अपनी स्मृति और अनुभव को इतना महत्व देते हैं तो क्य नहीं हम उन प्राचीन अनुभवों से भी लाभ उठाएं जो हमारे भपने भनुभवों से कई गुने भधिक स्वच्छ और पूर्ण हो सकते हैं। __ वैसे भी भाज का जन-जीवन अधिकाधिक उलझन-पूर्ण और भशांत होता जा रहा है। नयी नयी समस्याओं के नागपाश बनकर जीवन को जकड़ रहे हैं । आणविक महा विनाश की काली या प्रतिदिन गहरी होती जा रही है । ऐसी कठिनतम परिस्थिति