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________________ पू. श्रीमानमलजी म. देव साधना की अपेक्षा आत्म साधना में हमारा पूरा विश्वास है । यतिजी! हम सब इसी उपाश्रय में ठहरे हुए हैं। अगर देव आपके पास आ सकता है तो वह हमारे पास भी आ सकता है। उसे रोकनेवाला कौन है ? यति निराश होकर चला गया। सायंकालीन प्रतिक्रमण के बाद गुरुदेव ने सभी मुनिवरों को बुला कर सावधान करते हुए कहा-मुनियो! यति भैरव को साध रहा है। अतः रात्रि में देव उपद्रव होने की संभावना है इसलिए आप लोग निद्रा छोड़कर सभी स्वाध्याय में लग जाये और पंचपरमेष्ठी मंत्र का -स्मरण करे और निर्भय रहें । सभी मुनिवर गुरुदेव की आज्ञा को शिरोधार्य कर स्वाध्याय ध्यान में लीन हो गये । ___ इधर उपाश्रय के एक कोने में यति काले और गोरे भैरवजी को अपने 'आधीन करने की प्राल भावना से विविध वस्तुओं की सामग्रियों से मत्र का जाप करते हुए देवताओं का आह्वान करने लगा। मध्य रात्रि में मंत्र के अन्तिम उच्चारण के समय एक देव भयंकर और विकराल अट्टहास करता हुआ प्रकट हुआ और वोला-"लाव-लाव " देव का विकराल रूप देखकर और उसकी भयंकर चीत्कार सुनकर यति घडा गया । वह डर के मारे अचेत होकर भूमि पर गिर पड़ा और उसकी वहीं पर मृत्यु हो गई। भद देव मुनियों की ओर मुड़ा । उस समय सभी मुनि गहरी नींद में सोए हुए थे किन्तु मानमलजी महाराज सावधान होकर स्वाध्याय कर रहे थे। वह उनके पास आकर बोला-'लावलाव' । निडर साहसी मानमलजी महाराज ने देवता की ओर देखा और निर्भयता पूर्वक तीन बार नवकार मंत्र सुनाकर बोले-देव । आप को और क्या चाहिये हम तो निष्परिग्रहो मुनि हैं। आत्म-साधना ही हमारा लक्ष्य है। मुनि की निडरता से देव बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने अपना असली रूप प्रकट किया और वन्दन कर बोला- मै आप पर प्रसन्न हूँ। भाप इच्छित वर मागिए । मुनिश्री ने कहा--देव । हमने संसार के समस्त प्रलोभनों का परित्याग कर दिया है। वीतराग के
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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