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________________ यू० श्रीरोडीदासजी म० वह तप्त शिला रख कर उस पर खड़ा होता, बैठता और फिर उतरता, और तीखे काँटों की छड़ियाँ तपस्वीजी के शरीर पर डालता। इस प्रकार वह तपस्वीजी को पीड़ित कर अपना मन बहलाव करने लगा । अचानक एक राहगीरने उस दुष्ट की यह पैशाची लीला देखी। उसने उसको रोका और यत्नपूर्वक शरीर पर से सब काटे उठा लिये। तपस्वीजी ध्यानमग्न अवस्था में थे । राहगीर नमस्कार कर गांव में पहुँचा और उसने उस गवार की शिकायत पुलिस थाने में कर दी। पुलिस ने उसे पकड़ा, और उसे हवालात मै बन्द कर दिया । तपस्वीजी को अब इस घटना का पता लगा तो उनका दयालु हृदय अनुकम्पा से भर आया । वे सोचने लगे"यह गरीव बेचारा कहीं सजा का पात्र बन जायगा तो इसका परिवार दुःखी हो जाएगा । इसके जेल में जाने से इसके बाल-बच्चे भूखे रह जायेंगे ।" उन्होंने उसी समय श्रावकों को बुलाकर कहा-भाई। एक व्यक्ति जो कुछ करता है, और उसका विरोधी उसे पसन्द कर लेता है तो फिर झगड़ा बढ़ाने का कोई अर्थ नहीं। परिषह उठाना, और क्षमा धारण करना यह तो मुनियों का धर्म है। जब तक आप लोग उसे मुक्त नहीं कराभोगे, तब तक मैं आहार नहीं करूँगा । तपस्वीजी की इस कठोर प्रतिज्ञा से घबराकर श्रावकों ने थाने में जाकर उसे मुक्त करा दिया । उपकारी का भला तो हर कोई करता है किन्तु अपकारी के प्रति उपकार के करने वाले तपस्वीजी जैसे कोटि कोटि पुरुषों में क्वचित ही मिलते हैं। तपस्वीजी की इस महानता से उसका हृदय बदल गया । वह सरल और विनम्र होकर तपस्वीजी के चरणों में आ गिरा, और बार वार क्षमा याचना करने लगा । वह तपस्वीजी का पूरा भक वन गया । नये क्षेत्र में पदार्पण नाथद्वारा (मेवाड़) वैष्णव का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है। इस तीर्थ पर पुष्टिमार्ग के संतों का ही अनुशासन है। इस क्षेत्र में वहाँ उस
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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