SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 707
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "आगम के अनमोल रत्न भी भस्म से आच्छादित अग्नि के समान उसका शरीर तेजस्वी लगता था । एक दिन काली आर्या के मन में पिछली रात्रि में इस प्रकार का विचार हुभा कि तपस्या के कारण मेरा देह अत्यन्त क्षीण हो गया है अतः जब तक मेरे शरीर में उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषाकार पराक्रम भादि की विद्यमानता है तब तक मुझे अनशन कर के संलेखना पूर्वक मृत्यु की कामना न करते हुए विचरण करना चाहिये। ऐसा विचार कर के वह दूसरे दिन आर्याचन्दना के पास आई और वन्दन कर बोली-हे भार्या ! मै आपकी आज्ञा से संलेखना झूषणा करना चाहती हूँ। आर्या चन्दनवाला ने कहा-देवानुप्रिये ! जैसी तुम्हारी इच्छा । मायाचन्दनबाला की आज्ञा प्राप्त कर भार्या काली ने अनशन कर लिया । एक मास तक संथारा पूरा करके अन्तिम श्वास में केवलज्ञान प्राप्त किया और अव्यावाध सुख को प्राप्त किया । इस महासाध्वी ने आठ वर्ष तक संयम की उत्कृष्ट भावना से भाराधना की। सुकाली आर्या चम्पा नगरी के राजा कोणिक की माता एवं राजगृह के महाराजा श्रेणिक की रानी । इसने भी भगवान महावीर का उपदेश श्रवण कर भार्या चन्दनबाला के समीप दीक्षा ग्रहण की और शास्त्रों का अध्ययन किया । उपवास वेला तेला आदि अनेक तपस्या करने के बाद आर्या चन्दना “की भाज्ञा लेकर सुकाली आर्या ने कनकावली तप प्रारंभ कर दिया । यह तप रत्नावली के समान ही है किन्तु इस तप की विशेषता यह है कि जहां रत्नावली तप में दोनों फूलों की जगह आठ आठ बेले और मध्य में ३४ बेले किये जाते हैं। कनकावली में आठ भाठ वेलों की जगह आठ आठ तेले और मध्य में ३४ बेलों की जगह ३४ तेले -किये जाते हैं।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy