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________________ आगम के अनमोल रत्न वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया । भगवान के उपदेश से प्रभावित होकर अलक्ष गृहस्थ जीवन का परित्याग करने का निश्चय कर और अपने ज्येष्ठ पुत्र को गद्दी पर बैठाकर साधु होगया । साधु होने के बाद इसने ग्यारह अंग सूत्रों का अध्ययन किया तथा बहुत वर्षों तक चारित्र पर्याय का पालन किया । अन्त में अनशन और संलेखना पूर्वक विपुलगिरि पर्वत पर देहोत्सर्ग कर मोक्ष प्राप्त किया । अतिमुक्तककुमार पोलासपुर नाम का एक अत्यन्त रमणीय नगर था। वहाँ विजय नाम के राजा राज्य करते थे। उसकी रानी का नाम श्रीदेवी था। श्रीदेवी से उत्पन्न विजयराजा के भतिमुक्तक नाम का पुत्र था । पोलासपुर नगर के बाहर श्रीवन नाम का उद्यान था । वह सर्व ऋतुओं के फल फूलों से समृद्ध था। एक बार भगवान महावीर स्वामी अपने श्रमण परिवार के साथ पोलासपुर आये और श्रीवन उद्यान में ठहरे । गौतम इन्द्रभूति पोलासपुर नगर में भाहार के लिए गये । उस समय स्नान करके एवं वस्त्रालंकारों से विभूषित होकर के आठवर्षीय कुमार अतिमुक्तक लड़के लड़कियों, वच्चे-बच्चियों के साथ इन्द्रस्थान पर खेल रहा था। कुमार अतिमुक्तक ने जब इन्द्रभूति गौतम को भिक्षार्थ अटन करते हुए देखा तो उनके पास जाकर उसने पूछा -" माप कौन हैं ? इस प्रश्न पर इन्द्रभूति ने उत्तर दिया- 'मैं निम्रन्थ साधु हूँ और आहार के लिये निकला हूँ। यह उत्तर सुन अतिमुक्तक बोला-भन्ते ! मै आपको भिक्षा दूंगा। यह कहकर उसने गौतम स्वामी की उँगली पकड़ी और उन्हे अपने घर ले गया । गौतम इन्द्रभूति को अपने घर भिक्षार्थं आते देख अतिमुक्तक की माता श्रीदेवी अत्यन्त प्रसन्न हुई और तीन बार प्रदक्षिणा पूर्वक वन्दना कर उन्हें पर्याप्त भोजन पान दिया । अतिमुक्तक ने गौतमस्वामी से
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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