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________________ आगम के अनमोल रत्न ६०५० अर्जुनमाली ने अपनी पूरी शक्ति से सुदर्शन सेठ पर मुद्गर का प्रहार किया किन्तु वह असफल रहा । तब उसने दूसरी वार वडी ताकत से मुद्गर उठाया और सुदर्शन पर फेंकने के लिए उसे चारों भोर धुमाने लगा । चारों ओर घुमाने पर भी जब किसी प्रकार से उसके ऊपर अपना मुद्गर नहीं चला सका तव वह यक्ष सुदर्शन के सामने आकर खड़ा हो गया और अनिमेष दृष्टि से उसकी और देखने लगा। इसके बाद वह यक्ष अर्जुनमाली के शरीर को छोड़कर चला गया । शरीर से यक्ष के निकल जाने पर वह निःसत्त्व होकर धरणी तल पर गिर पड़ा । यह भासुरी शक्ति पर आध्यात्मिक शक्ति की महान विजय थी। निस्तेज अर्जुनमाली सेठ सुदर्शन के चरणों में अचेत अवस्था में पड़ा हुआ था । कुछ क्षण के बाद अर्जुनमाली सचेत हुभा और अत्यन्त शान्त मुद्रा में श्रेष्ठी के सामने देखने लगा। उपसर्ग शान्त हुआ जान सेठ सुदर्शन ने ध्यान समाप्त किया। अर्जुनमाली ने सुदर्शन से कहा-देवानुप्रिय | भाप कौन हो, और कहाँ जाना चाहते हो ? सुदर्शन ने कहा-मेरा नाम सुदर्शन है । मैं भगवान महावीर का उपासक हूँ। भगवान महावीर गुणशील उद्यान में ठहरे हुए हैं । मैं उन्हीं के दर्शन करने जा रहा हूँ। अर्जुनमाली वोला-क्या मै भी भगवान के दर्शन के लिए आ सक्ता हूँ। सुदर्शन ने कहा-क्यों नहीं, अवश्य आ सकते हो । भगवान का दरबार सब के लिए खुला है। वहाँ अपावन व्यक्ति भी पावन वन जाता है । अर्जुन सुदर्शन के साथ चल पड़ा । भगवान महावीर की सेवा में पहुँच दोनों भगवान का धर्मोपदेश- सुनने लगे। कथा के अन्त में अर्जुनमाली ने भगवान से कहा-भगवन् ! आपका उपदेश मुझे अत्यन्त रुचिकर लगा। जन्म मरण की व्याधि से मुक्ति पाने की भौषधि आपका उपदेश ही है । मै आपके पास दीक्षा लेना चाहता हूँ। भगवान ने उसे दीक्षा का मन्त्र सुना दिया । वह भगवान का शिष्य बन गया।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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