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________________ आगम के अनमोल रत्न ५४१ धन्यकुमार जिस दिन प्रवजित हुए उसी दिन भगवान महावीर को वन्दन कर इस प्रकार बोले-'भन्ते ! आज से जीवन पर्यन्त निरंतर षष्ठ तप से तथा भायंबिल के पारणे से मै अपनी आत्मा को भावित पवित्र करते हुए विचरण करना चाहता हूँ। षष्ठ तप के पारणे में रुक्ष आहार करूँगा। वह रूक्षाहार भी ऐसा हो जिसमें घृतादि किसी प्रकार का लेप न लगा हो, घरवालों के खा लेने के पश्चात् बचा हुमा, बाहर फेंकने योग्य तथा वावा जोगी, कृपण, मिसारी आदि जिसकी वांछा न करें ऐसे तुच्छ आहार को गवेषणा करता हुआ विचरण करूँगा।" भगवान ने धन्यमुनि को आज्ञा प्रदान कर दी। इस प्रकार का कठोर भभिग्रह धारण कर महादुष्कर तपस्या करते हुए धन्यमुनि विचरने लगे। उत्कृष्ट अभिग्रह के कारण धन्यमुनि को कभी आहार मिलता तो पानी नहीं मिलता और कभी पानी मिलता तो आहार नहीं मिलता। जो कुछ भी आहार मिल जाता था वे उसी में सन्तोष का अनुभव करते थे किन्तु मन में जरा भी दीन भावना नहीं लाते। धन्यमुनि अदीनभविमन, अकलुष विषाद रहित अपरिश्रान्त व सदा समाधियुक्त रहते थे। धन्यमुनि गवेषणा से प्राप्त भाहार को इस प्रकार ग्रहण करते थे जिस प्रकार सर्प बिल में प्रवेश करता है अर्थात् मुख के दोनों पार्व भागों को स्पर्श किये बिना स्वाद की आसक्ति से रहित कवल को सीधा निगल जाते थे। इस प्रकार उग्रतपस्या के कारण धन्यमुनि का शरीर अत्यन्त कृश हो गया। उनके पैर, पैरों की अंगुलियां, घुटने, कमर, छाती, हाथ, हाथ की उंगलियाँ, गरदन, नाक, कान, भाख आदि शरीर का प्रत्येक अवयव कृष और शुष्क हो गया। शरीर की हडियो दिखाई देने लग गई । जिसप्रकार कोयलों से भरी हुई गाड़ी के चलने से शब्द होता है उसी प्रकार चलते समय भौर उठते समय धन्यमुनि की हड्डियों करड करड शन्द करती थीं। उनका शरीर इतना क्षीण हो गया था कि उठते बैठते, चलते फिरते और बोलते समय भी उन्हें.
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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