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आगम के अनमोल रत्न
पद्मावती साध्वी को इस बात का पता चला । पिता पुत्र के युद्ध और उसके द्वारा होने वाले नर संहार की कल्पना से उसे बड़ा दुःख हुआ । वह करकण्डू के पास गई और बोली-करकण्डू ! मै तुम्हारी मां हूँ। दधिवाहन तुम्हारे पिता हैं । ऐसा कहकर पद्मावती ने आदि से अन्त तक सारा हाल सुनाया उसे माता मान कर करकण्डू ने भक्तिपूर्वक वन्दन किया । युद्ध का विचार छोड़ कर वह पिता से मिलने चला।
साध्वी पद्मावती वहाँ से शीघ्र ही दधिवाहन की छावनी में पहुँची। वह दधिवाहन से मिली और उसने अपना परिचय देते हुए कहा"राजन् ! करकण्डू तुम्हारा ही पुत्र है । 'करकण्डू मेरा ही पुत्र है।' यह जानकर दधिवाहन बड़ा प्रसन्न हुआ । उसी समय वह करकण्डू से मिलने चला । मार्ग में दोनों मिल गए । करकण्डू दधिवाहन के पैरों में गिर पड़ा । दधिवाहन ने उसे छाती से लगा लिया। पिता को बिछड़ा हुआ पुत्र मिला और पुत्र को पिता । दोनों सेनाएँ जो परस्पर शत्रु वन कर आई थी परस्पर मित्र बन गई। चम्पा कंचनपुर दोनों का राज्य एक हो गया। दधिवाहन अपने पुत्र करकण्डू को राज्य दे कर दीक्षित हो गया ।
तपस्वध्याय ध्यान में लीन होकर पद्मावती महासती ने आत्माकल्याण किया ।
सती पद्मावती महाराजा चेटक की पुत्री थीं।
करकण्डू बड़ा गो प्रेमी था उसने अपनी गोशाला का एक गोवत्स संरक्षण करने के लिये किसी गोपालक को दिया । उसे अच्छा खानपान मिलने से वहबड़ा हृष्ट पुष्ट और सुन्दर लगने लगा । युवा बैल को देखकर करकण्डू बड़ा प्रसन्न हुआ ।
- कालान्तर में वह सांढ बूढ़ा हो गया । वृद्ध अवस्था से उसका शरीर बहुत जीर्ण नजर भाता था। उसे एक बार करकण्डू ने देखा । वह सोचने लगा-'मेरी भी यही अवस्था होगी। उसने बैल