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________________ आगम के अनमोल रत्न ४८९ इति तक कह सुनाया और कहा-"अवन्तीपति चन्द्रयश और मिथिला 'पति नमि एक ही माता की सन्तान होने के नाते परस्सर भ्रातृभाव से आलिङ्गन करें, मेरी यही इच्छा है ।" इतना कहकर साध्वी मदन, रेखा वहाँ से उपाश्रय की ओर चल पड़ी। दोनों पुत्र उसकी ओर टकटकी लगाये देखते रहे । युद्ध बन्द हुभा । सैनिक बिखरे और नमिराज ने चन्द्रयश के साथ जीवन में पहलीवार अवन्ती में प्रवेश किया । भवन्ती और मिथिला के वोच भीषण रूप से गरजते हुए विरोध का सागर सूख गया और दोनों राज्य सौहार्द के बन्धन में बैंच गए। दोनों राज्य एक हो गए। चन्द्रयश ने नमि को अपना सारा राज्य दे दिया और संसार के समस्त स्नेह-बन्धनों को तोड़ वे साधु बन गये । नमि ने भी अवन्ती का राज सभाल लिया। नमिराज जितना युद्धवीर था उतना ही शृङ्गारप्रिय था । कभी तो वह सेना का संचालन करता और कभी ७०० रमणियों के बीच उद्यान के कुंज में रसप्रमत्त मृग की भाँति पड़ा रहता था। इसके सिवाय जीवन के अन्य आनन्द और उल्लास से वह विलकुल अनभिज्ञ था । इतना होते हुए भी उसके प्रवल प्रताप ने आस-पास के छोटेमोटे सामन्तों और प्रतिस्पर्धियों को निष्प्रभ बना दिया । नमिराज कोई महान सम्राट होने के लिये पैदा हुआ है, इस प्रकार उसकी कीर्तिकथा दूर-दूर देशों में फैल गई थी। ___राग और वैराग्य के बीच सगी बहनों के समान सम्बन्ध होता है, इस बात को समय बीतने पर नमिराज ने अपने जीवन में प्रत्यक्ष कर के दिखा दिया महाराज नमि की सातसौ रानियों थी । उनके नूपुरों से सारा महल झंकृत था । एक वार नमिराज के देह में दाहज्वर उत्पन्न हो
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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