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आगम के अनमोल रत्न
एक समय मदनरेखा महल के छत पर खड़ी खड़ी नगर के दृश्य देख रही थी। उस समय महाराज मणिरथ उसी मार्ग से जा रहे थे । अचानक उनकी दृष्टि महल पर खड़ी मदनरेखा पर पड़ी। उसके अनुपम सौंदर्य को देखकर चे मुग्ध हो गये।
वह अपने महल में आया और मदनरेखा को अपनी भार्या बनाने की युक्ति सोचने लगा। वह रात दिन इसी उधेड़बुन में रहता कि किस प्रकार इस परम सुन्दरी को फसाऊँ और अपनी कामना को पूर्ण करूँ । अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिये उसने मदनरेखा की प्रधान दासी के साथ अपना सम्पर्क स्थापित किया । उसे भी लालच में फॅमा लिया । भव वह प्रतिदिन मूल्यवान चीजें दासी के साथ मदनरेखा को भेजने लगा। मदनरेखा भी अपने जेठ के उपहार को पवित्र भावना से लेने लगी।
___ एक दिन उपहार के साथ राजा मणिरथ ने मदनरेखा को प्रेम 'पत्र दिया । प्रेम पत्र पढ़ते ही राजा के द्वारा प्रतिदिन भेजे जाने वाले उपहार का रहस्य उसकी समझ में आया । उसने क्रुद्ध होकर पत्र फाड दिया और दासी को अपमानित कर कहा-"दुष्टे 1 भव से तू मेरे महल में पांव तक मत रखना और अपने राजा से जाकर कह देना कि जवतक मदनरेखा जीवित है तवतक तुम्हारी नीच कामना "पूरी नहीं हो सकती।"
अपमानित दासी ने मणिरथ को सारी बातें भाकर कह दी। मणिरथ ने सोचा--जबतक युगवाहु जोषित रहेगा तबतक मदनरेखा मेरी नहीं हो सकती । वह युगवाहु को मारने का उपाय सोचने लगा । एक दिन युगबाहु युद्ध से लौटकर वसन्तोत्सव के अवसर पर मदनरेखा के साथ वनक्रीड़ा करने गया । (रात्रि हो जाने से उसने वन ही में अपना डेरा डाल दिया । मणिरय को जब इस बात का पता चला तो वह अर्धरात्रि में नगोतलवार लेकर युगबाहु के तम्बू में घुस गया । उसने उसी क्षण सोते हुए युगवाहु पर तलवार