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________________ आगम के अनमोल स्त कपिल ने कहा-"राजन् ! मुझे सोचने के लिये कुछ समय दो।" कपिल अशोक वाटिका में आया और एक शिला खण्ड पर बैठ कर विचार करने लगा । उसने सोचा-"क्या मायूँ ? दो मासे सोने से क्या होगा ? यह तो कपड़े गहने बनाने के लिये भी काफी नहीं है अतएव मै क्यों न सौ मोहरें मांगूं ?" फिर सोचा कि-"यह मकान मादि बनाने के लिये काफी नहीं होगा, अतएव क्यों न हजार मोहरें मायूँ ?" ऐसा विचार करते करते वह लाख से करोड़ पर करोड़ से राजा के समस्त राज्य पर पहुँच गया । अचानक वृक्ष का एक जीर्ण पत्ता उसके सामने गिरा । पत्ते पर दृष्टि डालते ही कपिल के विचारों को दिशा बदल गई । पत्र की जीर्ण अवस्था देख कर उसे सारा संसार जीर्ण और विनाश शील लगने लगा । वह सोचने लगा-"यह भी खूब रहा ! दो मासे सोने से मै कहाँ पहुँच गया और फिर भी - सन्तोष नहीं। इस प्रकार विचार करते करते कपिल को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया ।' मुनि वनकर वह राजा के पास उपस्थित हुमा। मुनिवेश में कपिल को देख कर राजा ने पूछा"कपिल तुमने यह क्या किया ?" मुनि कपिल ने कहा-"राजन् ! जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो विवढई । दो मास कयं कज्ज कोड़िए वि न निद्वियं ॥ हे राजन् ! क्या कहूँ-जैसे जैसे लाभ होता है वैसे वैसे लोभ चढ़ता जाता है, जैसे मै दो मासे सोने की इच्छा से आया, किन्तु वह मेरी इच्छा आज करोड़ सोनैयो से भी शान्त नहीं हुई । इन्हीं सब विचारों से तृष्णा का परित्याग कर संयमी बन गया हूँ।" . राजा ने सयमी कपिल को बहुत स्मझाया उसे राज्य का लोभ दिया किन्तु कपिल मोह ममता का परित्याग कर वहां से चल दिये।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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