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आगम के अनमोल रत्न
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एक दिन पिता मुनि का स्वर्गवास होगया । वाल मुनि भरणक अब एकाकी बन गया। पिता की चिन्ता में एक दो दिन निकल गये । लेकिन भूख ने जोर पकड़ा। भरणक मुनि पात्र लेकर आहार के लिए चले पड़े। ___ ग्रीष्म का ताप तप रहा था। सूर्य की प्रचण्ड किरणों से धरती तप रही थी। गरम लू चल रही थी। अरणक आज पहली बार भिक्षा के लिये निकला था । गरमी भूख और प्यास से अरणक अधीर हो उठा । कोमलाग अरणक को पहली बार परिषह का पता लगने लगा। अरणक धूप से घबरा गया और विश्राम के लिये एक भव्य प्रासाद की छाया मे खड़ा हो गया । प्यास के कारण गला सूख रहा था । उस प्रासाद को खिड़की में एक युवा स्त्री बेठो थी। उसके अंग अंग से यौवन व मादकता फूट रही थी। उसका पति परदेश गया हुआ था इसलिये वह काम बाण से पीड़ित थी। अरणक मुनि की अलौकिक सुन्दरता को देखकर वह मुग्ध होगई। उसने दासी के द्वारा मुनि को अपने महल में बुला लिया और हाव-भाव व नयन-कटाक्षों से मुनि को अपने वश में कर लिया । मुनि उस सुन्दरी के यहां रहने लगे।
अरणक मुनि गृहस्थ बन गया और उसके साथ सुखोपभोग करते हुए जीवन यापन करने लगा। इधर साधुनों में अरणक की खोज होने लगी लेकिन उसका कहीं भी पता न लगा। भरणक के गायब होने की खबर उसकी माता तक पहुँची। माता घवड़ा गई और अपने पुत्र की खोज के लिए निकल पड़ी। वह गांव-गांव की धूल छानने लगी। जगह-जगह पूछती फिरती कि कहीं किसी ने उसके प्यारे पुत्र को देखा है ? वुढ़ापे के कारण शरीर शिथिल हो रहा था। आंखों से कम दिखाई देता था। फिर भी दिल में उत्साह था कि कहीं मेरा - अरणक मिल जायगा। अगाध मातृ-स्नेह के कारण वह पागल सी हो चली थी। 'अरणक' 'अरणक' पुकारती वह एक विशाल भवन के नीचे