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________________ ४३४ आगम के अनमोल रत्न भाव से आत्म चिन्तन करते करते वे क्षपक श्रेणी चढ़े और घनघाती कर्मों का क्षय कर केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। जिस शाश्वत सुख और आनन्द के लिये उन्होंने अनगारत्व लिया था वह उन्हें मिल गया । उन्होंने देह को छोड़ दिया और अजर अमर और शाश्वत स्थान को प्राप्त कर लिया । समीपवर्ती देवों ने केवली गजसुकुमाल पर अचित्त फूलों की वर्षा की और मधुर गायन तथा वार्यों की ध्वनि से आकाश को गुंजित कर दिया । दूसरे दिन प्रातःकाल कृष्णवासुदेव हाथी पर आरूढ़ हो कोरंट पुष्पों की माला से युक्त छत्र को सिर पर धारण किये हुए अपने विशाल सुभट परिवारों के साथ भगवान अरिष्टनेमि के दर्शन करने के लिये चल पड़े। मार्ग में उन्होंने जराजजेरित वृद्ध पुरुष को ईंटों की विशाल राशि में से एक-एक ईंट को उठाकर अपने घर ले जाते हुए देखा। कृष्ण के हृदय में उस वृद्ध के प्रति अनुकम्पा जाग उठी।. दयावान् कृष्ण ने अपने हाथी को ईटों के ढेर की ओर बढ़ाया। उसके पास पहुँचकर श्री कृष्ण ने अपने हाथ में ईट ली और वृद्ध के घर पहुंचा आये । वापस मुड़कर देखा तो वहाँ एक भी ईट नहीं थी, सब की सब वृद्ध के घर पहुंच गई । वात यह हुई कि कृष्ण को हाथ में ईंट उठाते देख उनके पीछे भनी वाली सेना ने समस्त ईटे उठाकर हाथोंहाथ वृद्ध के घर पहुँचा दी। कृष्ण की इस महानता पर वृद्ध ने अत्यन्त कृतज्ञता प्रकट की। कृष्ण भगवान की सेवा में पहुंचे और भगवान को वन्दन कर वे गजसुकुमाल को वन्दन करने के लिये इधर उधर देखने लगे। जब गजसुकुमाल को न देखा तो वे भगवान से पूछने लगे-भगवन् ! मुनि गजसुकमाल कहाँ हैं ? भगवान ने कहा-"एक व्यक्ति की सहायता से वे मुक्त हो गये हैं। जिस प्रकार तू ने मार्ग में एक वृद्ध की सहायता कर उसे श्रममुक्त किया उसी प्रकार एक व्यक्ति की सहायता से
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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