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________________ आगम के अनमोल रत्न ४२१ -शिथिलाचार का प्रायश्चित किया और पीठ फलक आदि को वापिस कर 'पन्थक के साथ शैलकपुर से विहार कर दिया । अन्य मुनियों को अब पता चला कि शैलक राजर्षि ने शिथिलाचार का परित्याग कर पन्धक के साथ विहार कर दिया है तव वे भी शैलक राजर्षि से आ मिले और उनकी सेवा करने लगे। शैलक राजषि ने वर्षों तक उत्कृष्ट संयम का पालन किया अन्तिम समय में पुण्डरिगिरि पर पाटोपगमन अनशन कर केवलज्ञान प्राप्त किया। देह का परित्याग कर वे अविचल सिद्ध गति में गये । गौतमकुमार द्वारवती नाम की अत्यन्त रमणीय नगरी थी। वह वारह योजन लम्बी और नौ योजन चौड़ी थी । वह धनपति के अत्यन्त बुद्धि कौशल द्वारा निर्मित की गई थी। उसके स्वर्ण के परकोटे थे। इन्द्रमणि, नीलमणि, वैडूर्यमणि आदि नाना प्रकार के पांचवर्ण के मणियों से जड़े हुए कपिशीर्षक से सुसज्जित एवं शोभनीय थी। उस नगरी के निवासी बड़े सुखी थे। उस नगरी के बाहर ईशान कोण में रैवतक पर्वत था । उस पर्वत पर नन्दनवन नामका उद्यान था । उसमें सुरप्रिय नामके न्यक्ष का यक्षायतन था । वह बड़ा प्राचीन और लोकमान्य था । उस नगरी में कृष्णवासुदेव राज्य करते थे । वे लोक मर्यादा को बान्धने वाले व प्रजा के पालक थे। वे भरत के तीन खण्ड पर शासन करते थे । उनके आधीन समुद्रविजय आदि दस दशाह और वलदेव आदि पांच महावीर थे । प्रद्युम्न आदि साडेतीन करोड कुमार थे । शत्रुओं से कभी पराजित न हो सकने वाले साम्ब आदि आठ हजार शूरवीर थे । महासेन आदि छप्पन हजार शक्तिशाली योद्धा थे । वीरसेन आदि कार्यकुशल इक्कीस हजार वीर थे । उग्रसेन आदि सोलह हजार राजा थे । रुक्मणी आदि सोलह हजार रानियाँ एवं अनङ्गसेना आदि चौसठ कला में निपुण अनेक गणिकाएँ थी । आज्ञा में रहने
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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