SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 445
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम के अनमोल रत्न उसी क्षण भपने सेवकों से इस प्रकार की घोषणा करवाई कि थावच्चापुत्र अपनी अपार धनराशि का परित्याग कर जन्म मरण के भय से भयभीत वनकर अर्हत अरिष्टनेमि के समीप दीक्षा ग्रहण कर रहा है। राजा, युवराज, रानी, कुमार, ईश्वर, तलवर, कौटुन्धिक, मांडलिक, इभ्य, श्रेठी, सेनापति आदि जो भी व्यक्ति थापच्चा पुत्र के साथ दीक्षा ग्रहण करेगा उसके समस्त परिवार का भरण पोपण कृष्ण वासुदेव करेंगे । इस घोषणा को सुनकर एक हजार व्यक्ति दीक्षा के लिए तैयार हो गये। एक हार पुरुषों के साथ थावच्चापुत्र गिविका में बैठकर भगवान अरिष्टनेनि के समीप पहुँचे और उन्होंने चार महामत रूप धर्म को स्वीकार किया। यावच्चापुन अनगार बन गये । अंगपत्रों का अनयन करने के बाद यावच्यापुत्र मनगर को उनके एक हजार साथी, शिष्य के रूप में मिल गये । थावच्चापुत्र अनगार भगवान की आनाटेकर हजार अनगारों के साथ प्रनानुग्राम विचरण करने लगे। विचरण करते करते थावच्चापुत्र अनगार हमार शिष्यों के साथ दौलपुर पधारे और नगर के बाहर सुभूनिभाग व्यान में जादिराज। वहां लक नाम का राजा राज्य रता था । उसी रानी का नाम पदनापती और पुत्र का नाम मण्हा था। उसके पंथन भादि पर नौ मन्त्री थे। वे चारों बुद्धि के निधान एवं राज्यधुराकतिक, यावच्चाउन अनगार के आगमन मा समाचार सुनकर नगर की जनता दमन करने गई । महाराज दौलक भी अपने पांच सौ मानिनों के मार दर्मन परने गया । अनगार म उपदेन मन उम्ने पन में मन्त्रिों के साथ श्रावक के बारह मत प्रण किये। थायलपुत्र अन्गार ने वहाँ से याहर जनपद विहार कर दिय।। शुक्र अनगार उस समय सौगन्पिश नाम की नगर्गई। उस नगरी याहा नीलशोक नामक इयान था। वहीं सुदर्शन नाम व नगर में रहना था। उमरे पान अपार धनमामि भी।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy