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________________ आगम के अनमोल रत्न था । एक से एक बढ़ कर कामोत्तेजक चित्रों की शृङ्खला, कोशा स्वर्गलोक से उतरी हुई मानो अप्सरा ! नील गगन, उमड़तीघुमड़ती काली पटाएँ, वर्षा की झमाझम, शीतल बयार, कोशा का संगीत कला की चिर साधना से मजा निखरा गान और नृत्य, ऐसा कि एक बार तो जड़ पत्थर भी द्रवित हो जाए परन्तु स्थूलिभद्र पद्मासन लगाये ध्यानमुद्रा में सदा लीन रहते । गणिका की नाना प्रकार की चेष्टाओं से वे किंचित् भी विचलित नहीं हुए । ___ इधर कोशा उन्हें विचलित करना चाहती थी और उधर मुनिवर स्थूलिभद्र उसे प्रतिबोधित करना चाहते थे । जब जब वह उनके पास जाती वे उसे संसार की असारता और काम भोग के कटु फल का उपदेश देते । मुनि स्थूलिभद्र के उपदेश से कोशा को अन्तर प्रकाश मिला । उनकी अद्भुत जितेन्द्रियता को देखकर उसका हृदय पवित्र भावनाओं से भर गया । अपने भोगासक्त जीवन के प्रति उसे बड़ी धृणा हुई । वह महान अनुताप. करने लगी। उसने मुनि से विनयपूर्वक क्षमा मांगी तथा सम्यक्त्व और बारह व्रत अंगीकार कर वह श्राविका हुई । उसने 'नियम किया-"राजा के हुक्म से आये हुए पुरुष के सिवाय मैं अन्य किसी पुरुष से शरीर सम्बन्ध नहीं करूँगी ।" ____ इस प्रकार व्रत और प्रत्याख्यान कर कोशा गणिका उत्तम नाविका जोवन व्यतीत करने लगी। चातुर्मास समाप्त होने पर मुनिवर स्थूलिभद्र ने वहाँ से विहार किया। एक समय राजा ने कोशा के पास एक रथिक को भेजा । वह बाण-सन्धान विद्या में बड़ा निपुण था । अपनी कुशलता दिखलाने के लिए उसने झरोखे में बैठे ही वैठे वाण चलाने शुरू किये और उनका एक ऐसा तांता लगा दिया कि उनके सहारे से उसने दूर के भाम्रवृक्ष की फल सहित डालियों को तोड़-तोड़ कर कोशा के घर तक खींच लिया।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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