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________________ ३६४ आगम के अनमोल रत्न था, जो आप जैसे निरागी और निर्मम में राग और ममता रखता था। यह राग द्वेष आदि संसार के हेतु हैं उनका त्याग कराने के लिये ही भगवान ने हमारा त्याग किया है ।" इस प्रकार शुभ विचार करते हुए गौतमस्वामी को क्षपकश्रेणी प्राप्त हुई। जिससे तत्काल घातीकर्म के क्षय होने से उन्हें केवलज्ञान प्राप्त होगया । भगवान महावीर के संघ का समग्र शासनभार गौतम के हाथों में था परन्तु केवलज्ञान होते ही उन्होंने संघ शासन पांचवे गणधर सुधर्मा को सौंप दिया। गौतमस्वामी केवली अवस्था में १२ वर्ष तक भगवान महावीर द्वारा उपदिष्ट एवं स्वयं द्वारा साक्षात् अनुभूत सत्य. धर्म का प्रचार करते रहे। अन्त में वीर संवत् १२ में गौतमस्वामी राजगृह आये और वहाँ एक मास का अनशन कर के उन्होंने अक्षय सुखवाला मोक्षपद प्राप्त किया । गौतमस्वामी ने ५० वर्ष की अवस्था में दोक्षा ग्रहण की । ३० वर्ष तक छद्मस्थ रहे और वारह वर्ष केवली अवस्था में । कुल आयु ९२ वर्ष की थी। २. अग्निभूति । गणवर अग्निभूति इन्द्रभूति गणधर के मंझले भाई थे। ये गोबरगांव के रहनेवाले थे । इनके पिता वसुदेव और माता पृथ्वी थी। अग्निभूति भी पाचसौ छात्रों के विद्वान् अध्यापक थे । ये भी अपने बड़े भ्राता इन्द्रभूति के साथ सोमिल ब्राह्मण के यज्ञोत्सव पर छात्रगण के साथ मध्यमापावा आये थे । इन्द्रभूति की प्रव्रज्या की बात पवनवेग से मध्यमापावा में पहुँचो । नगर भर में यही चर्चा होने लगी। कोई कहता 'इन्द्रभूति' जैसे जिनके आगे शिष्य होगये उन महावीर का क्या कहना है ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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