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आगम के अनमोल रत्न
नाना प्रकार के अभिग्रहों सहित साठ वरस तक तपस्या की । उसके बाद राम एकाकी, विहार करने लगे । विहार करते-करते राम मुनि कोटिशिला पहुँचे वहाँ माघ शुक्ला, द्वादशी के दिन शुक्ल ध्यान की परमोच्च स्थिति में केवलज्ञान प्राप्त किया । केवलज्ञान प्राप्त करने के बाद राम केवल पच्चीस वर्ष तक पृथ्वी पर विचरण कर भव्य जीवों को प्रतिबोध देते रहे । १५ हजार वर्ष की अवस्था में राम मोक्ष में गये । ९. कृष्णवासुदेव और बलदेव
द्वारिकानगरी में वसुदेव और देवकी के पुत्र कृष्ण वासुदेव राज्य करते थे । बलदेव और जराकुमार उनके ज्येष्ठ भ्राता थे । बलदेव की माता का नाम रोहिणी था । इनका शस्त्र हल था इस लिये ये हलवर कहलाते थे । इन्हें बलराम या बलभद्र भी कहते थे । कृष्ण के दरबार में जो पांच महावीर थे उनमें ये प्रमुख थे । इनकी चारिणी आदि राणियाँ थी और सुमुख, दुर्मुखं, कूपदारक आदि पुत्र थे । ये कृष्ण के साथ सदैव रहा करते थे । इन दोनों का एक दूसरे के प्रति अनन्यस्नेह था ।
एक बार भगवान अरिष्टनेमि का द्वारिका में आगमन हुआ । भगवान का आगनन सुनकर कृष्ण वासुदेव, बलदेव तथा अन्य यादव गग दर्शन करने गये । भगवान ने उन सब को उपदेश दिया । उपदेश सुनने के बाद विनय पूर्वक कृष्ण वासुदेव ने पूछा- 'भगवन् ! बारह योजन लम्बी नौ योजन चौड़ी इस सुन्दर द्वारिका नगरी का नाश किस कारण से होगा ?
भगवान ने कहा- "कृष्ण । शोर्यपुर नगर के पाराशर नामक तापस की नीच कुल की स्त्रो से उत्पन्न द्वैपायनऋषि द्वारा धनधान्य से समृद्ध इस द्वारिका का नाश होगा । शंत्र आदि कुमार मद्य पान कर ऋषि का अरमान करेंगे, जिसके फलस्वरूप द्वैपायन अपने तेजल से इस नगरी को भस्मकर देगा, जिससे यादववंश का नाम निशान बाकी न रहेगा ।"