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वासुदेव और बलदेव
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राज्य विभीषण को दिया और सीता को लेकर राम और लक्ष्मण अयोध्या को लौटे । माता कौशल्या, सुमित्रा, कैकयी को तथा भरत को और सभी नगर निवासियों को बड़ी प्रसन्नता हुई। सभी ने मिल -- कर - राम का राज्याभिषेक किया । अव लक्ष्मण तीन खण्ड के अधिपति वासुदेव हुए और राम वलदेव । न्याय-नीति पूर्वक प्रजा का पुत्रवत् पालन करते हुए बलदेव राम और वासुदेव लक्ष्मण सुख पूर्वक दिन बिताने लगे ।
कौशल्या के हृदय में जितना स्नेह राम के लिये था उतना ही स्नेह लक्ष्मण और भरतादि के लिये भी था । रानी कौशल्या अपने परिवार को सुखी देखकर फूली नहीं समाती थी किन्तु अपने पुत्र के जीवन को देखकर उसके मन में नई चेतना उत्पन्न हुई। उसने राम को वन में जाते देखा और लंका पर विजय प्राप्तकर वापिस लौटते हुए देखा । राम को वनवासी तपस्वी वेष में भी देखा । कौशल्या ने पति सुख को भी देखा और पुत्र वियोग के दुःख को भी सहन किया । वह राजरानी भी वनी और राजमाता भी । उसने संसार के सारे रंग देख लिये किन्तु उसे कहीं भी आत्मिक शान्ति का अनुभव नहीं हुआ । संसार के प्रति उसे वैराग्य हो गया । सांसारिक बन्धनों को तोड़ कर उसने दीक्षा अंगीकार कर ली। कई वर्षों तक शुद्ध संयम का पालन कर सद्गति को प्राप्त किया ।
एक समय रात्रि में सीता ने एक शुभ स्वप्न देखा । उसने अपना कहा- देवि । तुम्हारी कुक्षि पति के मुख से स्वप्न का अपने गर्भ का यत्नपूर्वक
स्वप्न राम से कहा । स्वप्न सुनकर राम ने से किसी वीर पुत्र का जन्म होगा । अपने फल सुनकर सीता वढी प्रसन्न हुई । वह पालन करने लगी ।
सीता के सिवाय राम के प्रभावती, रतनिभा, और श्रीदामा नाम की तीन रानियाँ और थीं। सीता को सगर्भा जानकर उनके मन