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आगम के अनमोल रत्न तीर्थंकरों के जन्म और मोक्ष के आरे संख्यातकाल रूप तीसरे आरे के अन्त में भगवान् ऋषभदेव स्वामी का जन्म हुआ और मोक्ष हुआ। चौथे आरे के मध्य में श्रीअजितनाथ स्वामी का जन्म और मोक्ष हुआ । चौथे आरे के पिछले आधे भाग में श्री संभवनाथ स्वामी से लेकर श्रीकुंथुनाथ स्वामी मुक्त हुए । चौथे आरे के अन्तिम भाग में अरनाथ स्वामी से श्री महावीर स्वामी तक सात तीर्थङ्करों का जन्म और मोक्ष हुआ।
तीर्थोच्छेद काल चौबीस तीर्थङ्करों के तेईस अन्तर हैं। श्री ऋषभदेवस्वामी से लेकर श्री सुविधिनाथ स्वामी पर्यन्त नौ तीर्थंकरों के आदिम आठ अन्तर में और श्री शान्तिनाथ स्वामी से श्री महावीर स्वामी पर्यन्त नौ तीर्थङ्करों के अन्तिम भाठ अन्तर में तीर्थ का विच्छेद नहीं हुआ। श्रीसुविधिनाथ स्वामी से श्री शान्तिनाथ स्वामी पर्यन्त आठ तीर्थकरों के मध्य सात अन्तर में नीचे लिखे समय के लिए तीर्थ का विच्छेद हुआ:१. श्री सुविधिनाथ और शीतलनाथ का अन्तर पाव पल्योपम । २. श्री शीतलनाथ और श्रेयांसनाथ का अन्तर पाव पल्योपम। ३. श्री श्रेयांसनाथ और वासुपूज्य का अन्तर पौन पत्योपम । ४. श्री वासुपूज्य और विमलनाथ का अन्तर पाव पल्योपम । ५. श्री विमलनाथ और अनन्तनाथ का अन्तर पौन पल्योपम । ६. श्री अनन्तनाथ और धर्मनाथ का अन्तर पाव पल्योपम । ७. श्री धर्मनाथ और शान्तिनाथ का अन्तर पाव पल्योपम ।
भगवतीशतक २० उदेशे ८ में तेईस अन्तरों में से आदि और अन्त के आठ अन्तरों में कालिक श्रत का विच्छेद न होना कहा गया है और मध्य के सात अन्तरों में कालिक श्रुत का विच्छेद होना बतलाया हैं ।दृष्टिवाद का विच्छेद तो समीर लीर्थाबरों के अन्तर काल में हुआ