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________________ १९२ आगम के अनमोल रत्न "बसाद" नामक ग्राम है जो आज भी मौजूद है । इस गांव , के उत्तर में एक बहुत बड़ा खण्डहर है। उसे लोग राजा विशाल का गढ़ कहते हैं । इस गढ़ के समीप एक विशाल अशोकस्तंभ है । पुरातत्ववेत्ताओं के मत से यही लिच्छवियों की प्रतापभूमि वैशाली है। .. वैशाली नगरी के यह ध्वंसावशेष करीब ढाई हजार वर्ष पहले की अनेक सुखद स्मृतियाँ जागृत करते हैं। यही गौतमबुद्ध और भगवान महावीर जैसे महान् क्रान्तिकारी पुरुषों की कर्मभूमि रही है, जिनके ज्ञान मालोक से सारा विश्व आज भी प्रकाशित है। । वैशाली नगरी का नाम ही सूचित कर रहा है कि किसी जमाने में वह बड़ी विशाल नगरी थी। रामायण में बतलाया गया है कि वैशाली बड़ी विशाल, रम्य, दिव्य और स्वर्गापम नगरी थी । जैनागमों में उसका वर्णन बड़ा भव्य है । बारहयोजन लम्बी और नौयोजन चौड़ी, सुन्दर रमणीय प्रासादों से सम्पन्न धन-धान्य से समृद्ध और सब प्रकार की सुख-सुविधाओं से युक्त, वैशाली अत्यन्त दर्शनीय नगरी थी ।' यह नगरी तीन' बड़ी दिवारों से घिरी हुई थी। किले में प्रवेश करने के लिये तीन विशाल द्वार थे । संसार के समस्त गणतन्त्रों से पुरानी गणतन्त्र-शासन-प्रणाली उस समय वैशाली में प्रचलित थी। वहाँ का गणतन्त्र विश्व का सबसे पुराना गणतन्त्र था । उसे जन्म देने का श्रेय इसी नगरी को है । हैहय वंश के राजा चेटक इस गणतन्त्र के प्रधान थे । इनके नेतृत्व में वैशाली की ख्याति, समृद्धि एवं वैभव चरम सीमा तक पहुँच चुका था । तत्कालीन भारत के प्रसिद्धराजा शतानिक, चम्पा के राजा दधिवाहन तथा मगध के सम्रा बिम्बिसार, अवंती के राजा चण्डप्रद्योतन, सिन्धुसौवीर के सम्राट उदयन और भगवान महावीर के ज्येष्ठ भ्राता नन्दिवर्धन महाराजा चेटक के दामाद होते थे इनके शासनकाल में प्रजाः अत्यन्त सुखी थी ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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