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आगम के अनमोल रत्न
___ अन्त में अनशन कर शंखमुनि अपराजित नाम के अनुत्तर विमान में ३३ सागरोपम की स्थितिवाले महद्धिक देव वने । उनके अनुज मुनि एवं यशोमती साध्वी भी अपराजित विमान में महद्धिक देव बने। नौवाँ भव
भगवान अरिष्टनेमि का जन्म रघुवंश तथा यदुवंश भारतवर्ष की प्राचीन संस्कृति-सभ्यता के उत्पत्तिक्षेत्र थे। रघुवंश में राम जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम और सीता जैसी महासती हुई । उसीप्रकार यादवकुलतिलक भगवान अरिष्टनेमि, श्रीकृष्ण एवं राजीमती जैसी सतियों से यादवकुल सदा के लिए अमर बन गया है।
इसी यदुवंश में अंधकवृष्णि और भोजवृष्णि नाम के दो परमप्रतापी राजा हुए । अंधकवृष्णि शौर्यपुर के और भोजवृष्णि मधुरा (मथुरा) के राजा थे।
महागज अधकवृष्णि के समुद्रविजय, अक्षोभ, स्तिमित, सागर, हिमवान, अचल, धरण, पूरण, अभिचन्द्र और वसुदेव ये दस दशार्ह पुत्र थे । समुद्रविजय के बड़े पुत्र का नाम अरिष्टनेमि था जिसका वर्णन पाठकों के सामने है । महाराज अधकवृष्णि के छोटे पुत्र वसुदेव के कृष्ण आदि पुत्र हुए । कृष्ण की माता का नाम देवकी था । देवकी ने एकसमान आकृति ' रूप एव रंग वाले आठ पुत्रों को जन्म दिया जिनमें श्रीकृष्ण सातवें पुत्र और गसुकुमाल भाठवे पुत्र थे । वसुदेव जी के कुंती और माद्री ये दो छोटी बहने थी । भोजवृष्णि के एक भाई मृत्तिकावती नगरी में राज्य करते थे । भोजवृष्णि के पुत्र महाराज उग्रसेन हुए । इनकी रानी का नाम धारिणी था।।
जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में शौर्यपुर नाम का नगर था । वहाँ के शासक महाराजा समुद्रविजय थे । उनकी रानी का नाम शिवादेवी था । शंखमुनि का जीव अनुत्तरविमान से चक्कर कार्तिक वदि १२ के दिन चित्रा नक्षत्र में महारानी शिवादेवी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ। महारानी ने उसी रात्रि में तीर्थवर के सूचक १४ महास्वप्न देखे । गर्भवती महारानी अपने गर्भ का यत्नपूर्वक पालन करने लगी।