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तीर्थर चरित्र
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दीक्षा धारण की । आप के साथ नन्द, नन्दिमित्र, सुमित्र, बलमित्र, भानुमित्र; अमरपति, अमरसेन और महासेन इन आठ इक्ष्वाकुवंशी राजकुमारों ने भी दीक्षा ग्रहण की। देवोंने नन्दीश्वर द्वीप में जा कर अठाई महोत्सव किया ।
दीक्षा लेने के बाद दिन के अन्तिम प्रहर में अशोक वृक्ष के नीचे केवलज्ञान और केवलदर्शन उत्पन्न हो गया जिससे उन्हें तीनकाल और तीनलोक के समस्त पदार्थ हस्तामलकवत् प्रतिभासित होने लगे। केवलज्ञान के बाद देवोंने उनका कैवल्य कल्याणक बड़े हर्षोल्लास से मनाया । पूर्वोक जितशत्रु आदि राजाओं ने भगवान मल्लिनाथ से दीक्षा धारण की, चौदह पूर्व का अध्ययन किया और सम्पूर्ण कर्मों का क्षय करके मोक्ष प्राप्त किया।
___ भगवान मल्ली सहस्राम उद्यान से निकलकर वाहर जनपद में विहार करने लगे।
“ भगवान मल्ली के अठाईस गण और भिषक आदि भट्ठाईस गणधर थे। चालीस हजार साधु और वन्धुमती भादि पचपन हजार साध्वियाँ थी । इनके श्रमण संघ में छसौ चौदह पूर्वधर (त्रिषष्टी के अनुसार ६६८ चौदह पूर्वधर', दो हजार अवधिज्ञानी (त्रिषष्टी के अनुसार २२००), बत्तीस सौ केवलज्ञानो (त्रिषष्टी के अनुसार २२००), पैतीस- सौ वैक्रियलन्धिधारी (त्रिषष्टी के अनुसार २९००), माठ सौ मनःपर्यायज्ञानी (त्रिषष्टी के अनुसार १७५०), १४०० वाद लब्धिवाले, दो हजार अनुत्तरोपपातिक, १८४००० श्रावक (त्रिषष्ठी के अनुसार १८३८००) एवं ३६५००० श्राविकाएँ (त्रिषष्टी के अनुसार ३७०००० श्राविकाएँ) थीं।
भगवान मल्ली के तीर्थ में दो प्रकार की अन्त-कर भूमि-हुई-1 वह इस प्रकार युगान्तकर भूमि और पर्यायान्तकर भूमि। इनमें से शिष्य प्रशिष्य आदि बीस पुरुषों रूप युगों तक अर्थात् वीसवें पाट' तक युगान्तकर भूमि हुई अर्थात् वीस पाट तक साधुओं ने मुक्ति प्राप्त