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तीर्थङ्कर चरित्र
बदले में वे मेरे राज्य की भी मांग करें तो स्वीकार कर लेना।" महाराजा का सन्देश लेकर दूत मिथिला पहुँचा । ___ उस समय कुणाल नाम के जनपद की राजधानी श्रावस्ती थी। वहीं रुक्मि नाम के राजा राज्य करते थे । उसकी रानी का नाम धारणी था। उसके रूप और लावण्य में अद्वितीय सुबाहु नाम की कन्या थी। उसके हाथ पैर अत्यन्त कोमल थे।
एकवार सुबाहुकुमारी का चातुर्मासिक स्नान का उत्सव आया । इस अवसर पर महाराज के सेवकों ने पांचवर्णों के पुष्पों का एक एक विशाल मण्डप बनाया और उस मण्डप में श्रीदामकाण्ड (पुष्प की मालाएँ) लटकाये । नगरी के चतुर सुवर्णकारों ने पांचरंग के चावलों से नगरी का चिन्न बनाया उस चित्र के मध्यभाग में एक पट्ट-बाजोट स्थापित किया ।
महाराज रुक्मि ने स्नान किया और सुन्दर वस्त्राभूषण पहने और अपनी पुत्री सुबाहु के साथ गंधहस्ति पर बैठे। कोरंट पुष्प की माला और छत्र को धारण किये हुए चतुरंगी सेना के साथ राजमार्ग से होते हुए वे मण्डप में पहुँचे । गन्धहस्ति से नीचे उतरकर पूर्वा. भिमुख हो उत्तम आसन पर आसीन हुए । तत्पश्चात् राजकुमारी को पट्ट पर बैठाकर श्वेत और पीत चान्दी और सोने के कलशों से उसका अभिषेक किया और उसे सुन्दर वस्त्रालंकारों से विभूषित किया । फिर उसे पिता के चरणों में प्रणाम करने के लिये लाया गया ।
सुबाहुकुमारी पिता के पास आई और उन्हें प्रणाम कर उनकी गोद में बैठ गई । गोद में बैठी हुई पुत्री का लावण्य देखकर महाराज बड़े विस्मित हुए। उसी समय राजा ने वर्षधर को बुलाकर पूछावर्षधर 1 तुम मेरे दौत्य कार्य के लिये अनेक नगरों में और राजमहलों में जाते हो । तुमने- कहीं भी किसी राजा महाराजा सेठ साहू