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________________ तीर्थङ्कर चरित्र कालान्तर में वासुदेव अनन्तवीर्य चौरासी लाख पूर्व की आयु भोगकर निकाचित कर्म से प्रथम नरक में उत्पन्न हुए। वहां क्यालिस हजार वर्ष तक नरक की वेदना सहन करते रहे। अपराजित बलदेव बन्धु-विरह से अत्यन्त शोकाकुल रहने लगे। अन्त में उन्हें भी संसार के प्रति विरक्ति हो गई। उन्होंने जयधर नामक गणधर से दीक्षा ग्रहण की। उनके साथ सोलह हजार राजाओं ने भी दीक्षा ग्रहण को । इस प्रकार अपराजित मुनि चिर काल तक संयम की भाराधना कर अन्त में अनशन कर अच्युत देवलोक में इन्द्र हुए। ___वासुदेव का जीव प्रथम नरक से निकल कर भरत क्षेत्र के वैताढ्य पर्वत के गगनवल्लभपुर के विद्याधर राजा मेघवाहन की पत्नी मेघमालिनी के गर्भ में उत्पन्न हुआ। जन्म होने पर बालक का नाम मेघनाद रखा गया । मेघनाद अपनी शक्तियों के बल से वैताब्य की दोनों श्रेणियों का राजा बना। एक बार अच्युतेन्द्र ने अपने पूर्व भव के भाई को देखा और प्रतिबोध करने आया। मेघनाद ने अपने पुत्र को राज्य देकर दीक्षा ले ली। एकबार वे एक पर्वत पर ध्यान कर रहे थे। उस समय उनके पूर्व भव के वैरी, अश्वग्रीव जो प्रतिवासुदेव का पुत्र था और इस समय दैत्य था उसने उन्हें देखा और द्वेषाभिभूत होकर उपसर्ग करने लगा किन्तु वह निष्फल रहा । मुनिराज मेघवाहन उग्रतप का आचरण करते हुए अनशन करके अच्युत देवलोक में इन्द्र के सामानिक देव रूप से उत्पन्न हुए। आठवाँ और नौवाँ भव ___ जम्बूद्वीप के पूर्वमहाविदेह में सीता नदी के दक्षिण किनारे मंगलावती विजय में रत्नसंचया नाम की नगरी थी। वहाँ के शासक का नाम क्षेमंकर था। उसकी ' रानी का नाम रत्नमाला था । रत्नमाला
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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