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आगम के अनमोल रत्न mmmmmmmmmmmmmmm उत्तर देकर दमतारि ने कहा-मुनिवर्य ! आप अनेक स्थलों में घूमते है । भनेक चीजें देखते हैं और अनेक बातें सुनते हैं इसलिये कृपाकर ऐसी आश्चर्यजनक वात वतलाइए जो मेरे लिये नई हो।
नारदजी इसी अवसर की खोज में थे। वे बोले "महाराज ! मैं आज ही एक अद्भुत आश्चर्य देख कर आया हूँ। मैं 'शुभा' नाम की 'नगरी में गया था। वहाँ अनन्तवीर्य के दरबार में किराती और वर्वरी नाम की दो नृत्यागनाएँ हैं । वे संगीत, नाटय और वाधकला में अत्यन्त निपुण हैं। उनकी कला देखकर मैं दंग रह गया । स्वर्ग की अप्सरा तक उनके सामने तुच्छ लगती हैं । हे नराधिर वे नृत्यागनाएँ तेरी राज-सभा के योग्य है।" इस प्रकार आग को चिनगारी फेंक कर नारदजी “वहाँ से चल दिये।
नारद जी की बात सुनते ही तीन खण्ड के अधिपति दमितारि ने राजदूत को बुलाया और उसे अनन्तवीर्य ने पास जाने का आदेश दिया। राजा के आदेश से दूत अनन्तवीर्य के पास पहुँचा और उसका आदेश सुनाते हुए कहा-महाराज | भापकी सभा में बरी और किराती नाम की जो दो नृत्यांगनायें हैं उन्हें हमारे स्वामी दमितारि को भेंट स्वरूप मेजो । यह दमतारि की राजाज्ञा है। ___ अनन्तवीर्य ने दून से कहा-तुम जाओ। हम बाद में विचार करके दासियों को भेज देंगे।
दूतके चले जाने पर दोनों भाईयों ने विचार किया कि-दमितारि 'विद्या के बल पर ही अपने पर शासन करता है। हम भी यदि विद्या 'घर की दी हुई महाविद्या को सिद्ध करलें ता फिर हम उसे टक्कर ले सकेंगे।
वे ऐसा विचार कर ही रहे थे कि विज्ञप्ति आदि विद्याएँ स्वतः प्रकट हुई और उनके शरीर में समा गई । विद्या की प्राप्ति से दोनों भई बड़े शक्तिशाली हो गये। अब उन्होंने दमितारि की आज्ञा को तिरस्कार पूर्वक टाल दिया ।