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आगम के अनमोल रत्न
अपना निर्वाण, कोल समीप जानकर भगवान समेतशिखर पर पधारे। वहाँ एक हजार मुनियों के साथ अनशन प्रहण किया । श्रावण मास की कृष्णा तृतीया के दिन धनिष्ठा नक्षत्र में एक भास का अनशन कर एक हजार मुनियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया । भगवान का निर्वाणोत्सव इन्द्रादि देवों ने किया ।
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कौमार वय में २१ लाख वर्ष, राज्य पर ४२ लाख वर्ष, दीक्षा पर्याय में २१ लाख वर्ष, इस प्रकार भगवान ने कुल ८४ लाख वर्ष आयु के व्यतीत किये ।
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भगवान शीतलनाथ निर्वाण के बाद ६६ लाख और ३६ हजार वर्ष तथा सौ सागरोपम कम एक कोटी
सागरोपम
बीतने
परं श्रेयांसनाथ भगवानं मोक्ष में पधारें ।
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१२. भगवान वासुपूज्य
पुष्कर द्वीपार्ध के पूर्वविदेह क्षेत्र के मंगलावती विजय में रत्नसंचया नाम की नगरी थी। वहाँ के शासक का नाम पद्मोत्तर था । वह धर्मात्मा न्यायी, प्रजापालक और पराक्रमी था । उसने संसार का त्याग कर के वज्रनाभ मुनिराज के पास दीक्षा धारण की। संयम की कंठोर साधना करते हुए उसने तीर्थकर गोत्र का बन्ध किया और आयुष्य पूर्ण करके आणत कल्प में महर्द्धिक देव बना ।
जम्बू द्वीप के दक्षिण भरतार्द्ध में चंपा नाम की नगरी थी । उस सुन्दर नगरी के महाराजा वसुपूज्यं थे। उनकी पट्टरानी का नाम 'जया' था । प्राणतकप का आयु पूर्ण करके पद्मोत्तर मुनि का जीव ज्येष्ठ शुक्ला नवमी के दिन शतभिषा नक्षत्र में जया रानी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ। चौदह महास्वप्न देखे । गर्भकाल के पूर्ण होने पर
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फाल्गुण कृष्णा चतुर्दशी के दिन शतभिषा नक्षत्र में रक्तवर्णीय महिषलांछन से युक्त एक पुत्र को महारानी ने जन्म दिया ! देवी-देवताओं और इन्होंने जन्मोत्सव किया । पिता के नाम पर हो पुत्र का नाम वासुपूज्य दिया गया । कुमार देव देवियों एवं धात्रियों के संरक्षण में बढ़ने लगे
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