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रत्नाकर में सुमन चार
कमला जन "जोजो"
ग्लासारगमन पार श्रद्धा आज बहाऊं नया म्याग मृति तुम व जिनेन्द्रिय कर अनंना में केंगे। गि समाधान, मी पा गाना न भी बैंगे' सगरना या कभी तुम्हारे दोन गुणों का यह लेगा। जगनी नन पर विचिन महामुनि मन न नुम जगा देगा।
ज्यानि पूज नुम् नो हो तुम जब दीपा बिनाऊँ ग्या रनार में नुमन नार दा के आज यहा गया?
क्षमना-गमना में गागर तुम ये अदभुन गन्यागी, निन्तन मानम परे तुम्हाग पिर ग्या मग मी कागी। बागी में माधुरं गैर अन्नर में नाज मग्नना , विनोच माहम ग्यम मापन में नीस टनना दी।
प्रगति गरी नुम फिर में अब उन्हें गिनाऊँ ग्या' नागमन नारा मान बहा गया
प
मागंभट न. भातमागे पर गुमग पाया।
उन निम्न मार्ग ना ही पनन पापा | गम मा जन- गुम भी ।
Higer|
: गरम पार :
नाईया' काई