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________________ रत्नाकर में सुमन चार कमला जन "जोजो" ग्लासारगमन पार श्रद्धा आज बहाऊं नया म्याग मृति तुम व जिनेन्द्रिय कर अनंना में केंगे। गि समाधान, मी पा गाना न भी बैंगे' सगरना या कभी तुम्हारे दोन गुणों का यह लेगा। जगनी नन पर विचिन महामुनि मन न नुम जगा देगा। ज्यानि पूज नुम् नो हो तुम जब दीपा बिनाऊँ ग्या रनार में नुमन नार दा के आज यहा गया? क्षमना-गमना में गागर तुम ये अदभुन गन्यागी, निन्तन मानम परे तुम्हाग पिर ग्या मग मी कागी। बागी में माधुरं गैर अन्नर में नाज मग्नना , विनोच माहम ग्यम मापन में नीस टनना दी। प्रगति गरी नुम फिर में अब उन्हें गिनाऊँ ग्या' नागमन नारा मान बहा गया प मागंभट न. भातमागे पर गुमग पाया। उन निम्न मार्ग ना ही पनन पापा | गम मा जन- गुम भी । Higer| : गरम पार : नाईया' काई
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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