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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
मैं (श्रमण-लाल) धन्य हूँ, जो आप की स्तुति कर रहा हूँ। और कविराज (उपाध्याय श्री अमरचन्द्र जी म०) का यह श्रम भी धन्य है, जिसने कि स्तुत्य मुनिराज की स्तुति करने का यह अवसर दिया।
सइ विणास-सकिओ, सिग्धं गयेइ कोइवि । पर वास-सय पच्छा, अमरो अमर जस ॥
अपने श्रद्धेय जन के विस्मृति-विनाश की शका से कोई स्मृतियो को शीघ्र ही रचता है, जिससे उनका यश स्थायी हो सके। किन्तु वास्तविक यश तो गुरुदेव रत्नमुनि का है, जो सैकडो वर्षों के बाद आज अमर-यश अमर मुनि के द्वारा गूथा जा रहा है ।
रम्मे भंडारानयरे, कहिलं ससिसामिणा । जसबसयं रइन, लालचंदेण सम्हणा ॥
रम्य भण्डारा नगर मे स्वाध्याय प्रेमी स्वामी श्री चादमल जी महाराज के निर्देश से यह यशोदशक मुनि लालचन्द्र ने रचा है।
अलौकिक रत्न
सतीश्री फूलधीजी
श्रद्धेय पूज्यपाद श्री रलचन्द्र जी महाराज अपने युग के वस्तुत एक अलौकिक रत्न थे। उनका त्याग और सयम उज्ज्वल था। ज्ञान की साधना मे वे अपने युग के सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति थे। उनका आचार पवित्र और ज्ञान निर्मल था। गुरुसेवा उनके जीवन का एक महान् आदर्श था। अत वे सर्वदृष्टि से महान् थे ।
अपनी दीर्घ साधना से उन्होने जो कुछ प्राप्त किया था, उसे जन कल्याण के लिए वितरण कर दिया। भारत के विभिन्न प्रान्तो मे विहार-यात्रा करके उन्होने प्रसुप्त जनचेतना को जागृत किया था। समाज के दूपणो को दूर करके उसे पावन और पवित्र बताया था। अत उस महान् आत्मा के प्रति मैं अपनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित करती हूँ।