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________________ माव-भरित श्रद्धाञ्जलि पण्डित प्रवर, मनि श्रीलालचन्दजी 'श्रमण, काव्यतीर्थ न्यायतीर्थ' धम्मो मगलमुक्किट्ठ, मणीसुं व चिन्तामणी। पाविम त मुणि-सघे, मुणीसो रयणो अहू ॥ जिस प्रकार मगलो मे उत्कृष्ट मगल धर्म है और मणियो मे रत्न चिन्तामणि है, उसीप्रकार मुनि सध मे धर्म को प्राप्त कर मणियो मे रत्न चिन्तामणि के समान रत्नमुनि हुए। ससमत्ताइ गाणाइ, अहिंसा सजमो तवो । एएहि तिहि रयणेहि, राइणियो हु सो अभू ॥ सम्यक्त्व सहित, ज्ञानादिक से तथा अहिंसा, सयम और तप से-इन तीन रत्नो से वे रत्नत्रयी की भाति रत्लस्वरूप थे। भद्दवए जामो गिहे, संघेसु विक्खिओ तहा। देवा वि त नमसति, भद्दवए यि जो नरो॥ भाद्रपद मास मे गुरुदेव ने जन्म लिया था। भाद्रपद मे घर में जन्मे-और भाद्रपद मे ही संघ मे दीक्षित हुए । इस प्रकार जो भाद्रपद यानी भद्रता के पद पर स्थित है, उसे देवता की नमस्कार करते हैं। निग्गच्छिम किण्हपक्खा, आयाइ सुहे सुक्किले। वेसाहिं गई प्रप्पोति, जस्स धम्मे सया मणो ।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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