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________________ एक बात और, जो कहते-कहते शेप रह गई है, और वह है--"गुरुदेव श्री रत्नमुनि-स्मृति ग्रन्थ की । उस युग-पुरुप की पुण्यशताब्दी मनाने का विचार उठा, लम्बी चर्चा चली—इतनी लम्बी कि आगरा से कानपुर होकर कलकत्ता पहुंची, जैन-सस्कृति की अमर नगरी राजगृही के गिरि गह्वरो मे गूंजी और फिर मेरे साथ ही आगरा लौट आई । अब की बार योजना बनी और कार्य प्रारम्भ हो गया। विघ्न वाधाएं आती रही, और साथ मे मिटती रही ।" स्मृति-अन्य" के प्रकाशन का रास्ता लम्बा और विकट तथा साथ ही अति श्रम-साध्य था। मेरा स्वास्थ्य साथ नही देता था, फिर समाज के मिलन-सम्मेलन का चक्र भी तेजी से घूम रहा था । यह सब कुछ होने पर भी गुरुदेव की दिव्य-शक्ति का ही यह प्रभाव था, कि कार्य पूरा हो गया। दिशा-निर्देश मेरा होने पर भी इस महान कार्य मे प्रारम्भ से अन्त तक विजयमुनि जी ने निष्ठा के साथ जो श्रम किया है, उसे भुलाया नही जा सकता । मेरी अनुपस्थिति मे भी इस कार्य को उन्होने निरन्तर प्रगति पर रखा है। अत इस कार्य की पूर्ति मे विजयमुनि जी का श्रम विशेष उल्लेखनीय रहा है। साथ ही जिन महानुभाव लेखको ने अपने महत्वपूर्ण लेख भेजकर मेरी भावना का आदर किया है, उनके प्रति भी मैं अपनी कृतज्ञता अभिव्यक्त करता हूँ, और उनके सहयोग का आदर करता है। जैन भवन लोहामडी, आगरा --उपाध्याय अमर मुनि
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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