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जीवन एक परिचय
प्रचार और प्रसार किया । पण्डित मुनि श्री रत्नचन्दजी महाराज ने अपनी विमल ज्ञान-राशि को पजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश और विशेषत उत्तर प्रदेश के जन-जीवन मे महामेघ के समान हजार-हजार धाराओ मे बरसकर बिखेर दिया । अनेक स्थानो पर बलिप्रथा के रूप मे प्रचलित पशुहत्या बन्द कराई । अन्ध विश्वास और अज्ञानता के आधार पर फैले हुए वेश्या नृत्य, मृत्युभोज, जातिवाद और भूतप्रेतवाद का आपने दृढता से उन्मूलन किया । साघुसघ एव श्रावक संघ मे आए शिथिलाचार और भ्रष्टाचार पर तो, आप केशरी सिंह की तरह झपटते थे। आपकी वाणी मे ओज था, आप मे निर्भयता थी, अन्तर मे विवेक का विशुद्ध प्रकाश था, फलत जिस विषय पर भी बोले, साध कर बोले, सचाई से बोले । यही कारण था कि आपको धर्म प्रचार के क्षेत्रो मे सब ओर सफलता पर सफलता मिलती चली गई। नवीन क्षेत्र
आप के धर्म-प्रचार के परिणामस्वरूप अनेक नवीन-क्षेत्र बने। आगरा मे लोहामण्डी और हाथरस, जलेसर, हरदुआगज, लश्कर तथा जमुना पर मे लुहारा सराय, बिनौली, एलम रठोडा, छपरौली दोअर एव लिसाढ-परासोली आदि अनेक क्षेत्र आप के धर्म प्रचारार्थ किए गए दीर्घकालीन परिश्रम के प्रतिफल है। यहाँ के लोगो मे आज भी आपके प्रति विशेप भक्ति और धर्ममय अनुराग है। आगरा लोहामण्डी पर तो आपकी विशेष कृपा थी। यहाँ पर जो धर्मबीज का वपन हुआ, वह आपके सामने ही अकुरित हो चुका था, और आगे चलकर तो वह इतना पुष्पित एव पल्लवित हुआ कि अखिल भारतीय स्थानकवासी जैन संघ मे अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है ।
अध्यापन
आपने अपने जीवन-काल मे, अनेक श्रावक और श्राविकाओ को तथा साधु और साध्वियो को समय-समय पर शास्त्रो का अध्यापन कराया था । जाब के सुप्रसिद्ध सन्त पूज्यपाद अमरसिहजी महाराज, महाकवि चन्द्रभानजी और आत्मारामजी महाराज-जो बाद मे मूर्तिपूजक परम्परा मे सूरीश्वर विजयानन्दजी के नाम से प्रसिद्ध हुए-आप के प्रख्यात यशस्वा विद्या-शिष्य रह चुके थे । इनके सिवा भी १० कवरसेनजी महाराज, प० विनयचन्द्र जी महाराज और प० चतुरभुजजी महाराज आदि आपके अनेक शिष्यो ने भी आपसे ही अध्ययन किया था । अनेक साध्वियो एव श्रावको को भी आपसे ज्ञान-लाभ का सौभाग्य मिला था। आप मानवरून मे साक्षात् वहती हुई ज्ञान-गगा थे, जिधर भी गए, अध्ययन, मनन एव चिन्तन के सूखे और उजडे हुए खेत हरे भरे हो गए।
स्वर-साधना का चमत्कार
गुरुदेव का आगम और दर्शन-शास्त्र का ज्ञान तो गुरु गम्भीर था ही, अन्य विषयो का परिज्ञान भी अत्यन्त उच्चकोटि का था । आपके सम्बन्ध मे अनेक अनुश्रुतियां जन-समाज मे प्रचलित है । आपकी स्वर-साधना के सम्बन्ध मे एक महत्त्वपूर्ण घटना बहु-चर्चित है । एक बार गुरुदेव बडौत (मेरठ) नगर
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