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________________ जीवन एक परिचय क्रम पर चिन्तन और मनन करने लगा । विचार किया-यह ससार कितना क्रूर है ? यहाँ एक जीवन दूसरे जीवन का भक्ष्य है । यह ससार विचित्र है, अद्भुत है। यह मृत्यु जिसे बछडे के जीवन मे, मैने देखा है । क्या कभी मेरे जीवन मे भी आएगी ? अन्दर से आवाज आई अवश्य, अवश्य ही । रत्न को भव की विरक्ति का बीज मिल गया। गुरु की खोज में रत्न अपने घर नहीं लौटा । वह उस गुरु की खोज में निकल पडा, जो उसे मृत्यु के क्रूर पजो से बचा सके । उसने सोचा माता से दुलार मिल सकता है, पिता से प्यार मिल सकता है, और परिवार एव परिजन से सम्मान मिल सकता है, किन्तु क्रूर मृत्यु से सरक्षण इन सब से नहीं मिल सकता । वह मिलेगा, उस गुरु से जो स्वय मृत्युञ्जयी है । मृत्यु को जीतने के मार्ग पर चल रहा है । वह गुरु कौन है, कहाँ पर मिलेगा? रत्न इन्ही विकल्पो पर विचार करता-करता सोचता-समझता, नारनौल नगर पहुंच गया जहां उसका अपना कोई परिचित नही था। जिन खोजा, तिन पाइया जो खोजता है, वह पा लेता है। द्वार उसी के लिए खुलते है, जो खटखटाता है । रत्नचन्द्र, जिसकी खोज में था, वह गुरु उसे मिल गया। उस समय नारनौल नगर के धर्म-स्थानक मे तपस्वी हरजीमल जी महाराज विराजित थे । रोज उनके प्रवचन होते थे । श्रोताओ की भीड मे रत्न भी जा बैठा । तपस्वी जी के प्रवचन को सुनकर उसको शान्ति और सन्तोष मिला । विवेक और वैराग्य की अमृत-वर्षा से रत्न को बडा आनन्द मिला । वह जिस वस्तु की खोज मे था, वह वस्तु उसे मिल गई। एक दिन अवसर पाकर उसने अपने मन की बात गुरु के चरणो मे रखी । बोला-"गुरुदेव, मैं . भी आपके स्वीकृत पथ का यात्री बनना चाहता हूँ। क्या आप मुझे अपने चरणो मे शिष्य रूपेण स्वीकार करेंगे।" गुरु ने शिप्य की योग्यता और तीव्र भावना को देखकर कहा--"स्वीकार तो मैं कर लूंगा । परन्तु अपने माता और पिता की अनुमति लेना, तेरा काम होगा।" गुरु की स्वीकृति पाकर रत्न परम प्रसन्न हो गया। दीक्षा की अनुमति राही को राह मिल ही जाती है । देर-सबेर हो भी जाए, यह सम्भव है। किन्तु राह न मिले, यह कभी सम्भव नही । ससार के अन्य बन्धनो को तोडना आसान है, पर माता की ममता का बन्धन तोडना सरल नही है । माता की आँखो का खारा पानी बडी ताकत रखता है। किन्तु मेघकुमार और अतिमुक्त कुमार जैसे दृढ सक्ल्पी बालको के लिए माता की ममता का बन्धन भी बन्धन नही रहता । रत्लचन्द्र की राह मे दिक्कते बहुत थी, पर उसके मनोबल ने सब पर विजय प्राप्त की। पिता को सहज
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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