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लोकाशाह और उनकी विचार-धारा
पण्डित दलसुख मालवणिया
वर्तमान काल में जो सम्प्रदाय गज स्मनश्वामी नाम से विश्रुत है उसमें प्रानाणिक इतिहास में विषय मे आज कुछ भी यगय रूप में परिज्ञात नहीं होता । उक्त सम्प्रदाय का प्रवर्तक पौनय? इतिहास की दृष्टि से इस विषय में अभी तक अनुसंधान एवं खोज नहीं हो सन है। अनी तक मन्त्रदाय के इतिहास के नाम पर जो कुछ भी और जितना भी लिहा गया है, वह अधिक्तर विगेव पन उल्लेखो बार पर ही लिखा गया है। इसमे बहुत-सी बाते सत्य है । परन्तु, बहुननी आवार-शून्य एव जन-श्रुति-मूलक भी हैं। विसी भी मम्प्रदाय विशेष के प्रामाणिक इतिहास को लिखने के लिए उस नम्प्रदाय के अनुपाग वर्ग द्वारा लिखित सामग्री को भी अगर वनाना परम आवश्यक हो जाता है। केवल विरोधी पक्ष की मामग्री को ही आधार नहीं बनारा जा सकता। परन्नु लोकागाह के युग से लेकर आज तक किसी भी विद्वान स्थानकवानी मुनि ने अयग गृहस्थ ने विशुद्ध इतिहास के दृष्टिकोण से कुछ लिखा हो, वह मेरे देखने में नहीं आया । यदि किसी ने कुछ लिखा भी है, तो उसमें प्रगस्ति तण गुणानुवाद ही अधिक हैइतिहास उस में नहीं है। अनुसंवान, गोध और खोज की दृष्टि से कुछ भी लिखा नहीं गया।
विद्या-मन्दिर की सामग्री
लोकागाह पर लिन्दन से पूर्व उस विषय की नामी का मंत्रय और संक्लन में लिए गवश्यक था। लालभाई दलपत भाई विद्या मन्दिर के हस्त-प्रेतो के विविध भण्डार जिसमे पूज्यणट श्री पुप्यविजय जी महाराज का भंडार मुल्य है और अन्य दूसरे नम्हारी में भी स्थानकवासी सम्प्रदाय के विषय में जो लिखित साहित्य एकत्रित किया गग है उसका परिशीलन नै प्रारम्भ कर दिया। बहुत-सी हस्त-प्रतियों