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________________ भविसयतकहा और अपभ्रश-कथाकाव्य वर्णित हे और सुदर्शनचरित मे पचनमस्कार का माहात्म्य कथा रूप में वर्णित है । उपदेशात्मक कथाकाव्यो मे असद् प्रवृत्तियो एव कुरीतियो को छोडकर धर्मानुकूल आचरण करने का उपदेश सादाहरण अभिहित है। कथा-रूप अपभ्रश के कथाकाव्यो में प्रयुक्त सभी कथाओ का रूप ऐहिक कहानी की भाति मिलता है, जिसमे कई सरल कथाओ से मिलकर एक वृहत्कथा वनती है। घटनाए तथा उपकथाएँ शृखला की भांति आधिकारिक कथा से इनमे जुडी मिलती है । मक्षेप में, इन कथाकाव्यो में कथा के भीतर कथा मिलती है, जो विकासशील कथातत्वो से उद्भूत है । और इसीलिए मूल कथा मे से एक के बाद एक शास्त्रामो की भॉति कहानियाँ उपजती चली जाती है । बन्ध की दृष्टि से ये कथाएं कसी हुई-तथा प्रभावोत्पादक है। कहानियो की भाँति कुतुहल, औत्सुक्य और घटनाओ का चमत्कार आदि से अन्त तक इन कथाकाव्यो में मिलता ह । यद्यपि अपभ्रश की कथाएं सच्ची मानकर कही गई है, पर वस्तुत वे कल्पित है । धार्मिक व्रत तथा अनुष्ठानो मे आस्या उत्पन्न करने के लिए कवियों ने उसे सहज, स्वाभाविक एव गतिशील बनाने का यत्न किया है, जिसमें उन्हें बहुत कुछ सफलता मिली है । और कथा का यह सबसे बडा गुण है कि वह घटनाओ के साथ स्वाभाविक रूप मे गतिशील एव विकसित लक्षित होती है । चरितकाव्य की उपेक्षा कथाकाव्य में अतिमानवीय तथा अतिप्राकृतिक वृतो की कम सयोजना हुई है। भविष्यदत्तकथा अपभ्रश के उपलब्ध कयाकाव्यो मे भविष्यदत्त को कथा यथार्थ और करुण है । उद्देश्य, चरित्रचित्रण तथा कया-विकाम की दृष्टि से वह श्रेष्ठ रचना है। इस काव्य का महत्व तीन बातो मे हैपौराणिकता से हट कर लोक-जीवन का यथार्थ चित्रण करना, काव्य-रुढियो का समाहार कर प्रवन्धकाव्य का उत्तम निदर्शन प्रस्तुत करना और उमे सवेदनीय बनाना भाषा तथा रचना की दृष्टि से भी भ० क० का विशेप महत्त्व है । इस कया काव्य की प्रमुख विशेषता-गास्त्र और लोक-भापा, शैली तथा रचनातत्वो का समन्वय कर सजीवता प्रदान करना है । अपभ्रश कथाकाव्य अपभ्रश के प्राय सभी कथा काव्यो की वस्तु लोक-जीवन से उद्धृत है। उनमे कवि की कल्पना का मेल तथा धार्मिकता का आवरण किन्ही-पौराणिक रूढियो के साथ लक्षित होता है । कथाकाव्यो की अपेक्षा चरितकाव्यो पर पौराणिक प्रभाव अधिक है। इन कथाओ मे लोक-मनोविज्ञान तथा जन-जीवन की यथार्थता का भलीभांति समावेश दिखाई देता है। इसलिए अपभ्रश के कथाकाव्यो मे लोक-मानस, सामाजिक रीति-नीति, व्रत-पद्धति तथा रूढियो की प्रबलता लक्षित होती है।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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