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________________ गुरुदेव श्री रन नुनि लति-अन्य पास गध्यमिन, जो कालान्तर ने हर्षपुर के रूप ने परिवर्तित हो गई ल्पने युग की सुप्रसिद्ध नगरी है। आर्य प्रिय अन्य ने हर्षपुर मे होने वाले ल्ल्ने का निवारण पिाकीर गह्मण विद्वानो को हिलार्म गै शिक्षा दी। १४ आर्य दिन (दत्त) लाचार्य इन्द्रदत्त सूरी के पट्ट पर गौतन गोत्री गई कि बासीन हुए। गपके सम्बन्ध में भी विशिष्ट जानकारी नहीं मिलती है। गपके शिष्ठ-मंडल ने दो प्रमुख मुनिराज है-नार्य शान्तिप्रेणिक बोर नार्य तिहगिरि । आर्य शान्तिपिक के शिष्य समूह से उनका नागर सेणिया तापती बादि शाखालो का विनस हुमा । उच्चानागर' शाला ने ही तत्त्वार्य सूत्र के प्रणेता लाचार्य ज्नास्वाति हुए हैं, जो जैन साहित्य के इतिहास ने सर्वप्रथम दर्शन-शैली के सूत्रकार माने जाते हैं। मार्ग दिसूरी ने दक्षिण ने क्र्नाटक पर्यन्त सुदूर प्रदेशो मे विहार करके धर्म प्रचार क्यिा था । गपके ही युग ने ड़े न्हत जागेपोडे बार्यकालक आर्य रवपुटाचार्य इन्द्रदेव अनतह वृद्धगदी जोर तिरसेन प्रभृति और नहान् लाचापों का होना माना जाता है। बार्य कालक के नाम चे चार जचार्य प्रसिद्ध है । भ्यागगर्य श्यन मालक है, जिन्होंने प्रज्ञाप्ता स्त्र की रचना नौ । गप द्रव्यानुयोग के प्रकाण्ड ज्ञाता एव व्याख्याता थे। अनुश्रुति है कि चोर्नेन्द्र ने नहाविदेह क्षेत्र मे सीमन्धर स्वामी से निगोद का वर्णन सुना जोर जब उनने कनानुसार भरत क्षेत्र में बालकाचार्य के पास गए तो उनसे भी कवज्ञाही वर्णन सुनने को मिला । प्रभावक चरित्र के उल्लेलानुत्तार प्रयम कालकाचार्य युग प्रधान गुणाकर (जाग नेघगणी) सूरि के शिष्य थे। नापका वीर तं० २८० मे जन्म, 200 ने दीभा, ३३५ मे युग प्रधान पद और ने स्वर्ग गग्न हुना। द्वितीय कालकाचार्य नार्य दिन सूरी के लास-णत हुए हैं। जन्म स्थान धारा नगर राजावीरसिंह पिता, सुरसुन्दरी माता और सरस्वती होटी वल । नाई, बहन दोनो ने बाहती दोभा धारण की।न्ह वही कालकाचार्य हैं, जो उजयिनी के गर्दभिल्ल राजा द्वारा सरस्वती का अपहरण करने पर उसके साम्राज्य का शनो द्वारा उच्छेद कराने वाले माने जाते हैं । ये निन्धु नदी को पार करके फारत (ईरान) देग में भी गए थे । सुवर्णभूनि अर्थात् वर्मा या सुमात्रा जाने का भी उल्लेख है। इन्ही के भानजे राजा बलन्त्रि गैर भानुमित्र हैं जिन्होंने शको को पराजित करने भारतीय स्वतंत्रता मे पतान को पुन दोधूयन्गन क्यिा । कुछ इतिहासकार वलमित्र भानुमित्र, को ही प्रत्तिद्ध विक्रम संवत् के प्रवर्तन राजा विक्रमादित मानते है। यह द्वितीय नालकाचार्य हो राजा वलमित्र को वन भानुनी के पुत्र बलनानु को दीक्षा देने के कारण उज्जयिनो के चातुर्मास ने पिहार कर दक्षिण आन्ध्र ने प्रतिष्ठानपुर गए. जहां के राजा 'उत्तर प्रदेश मे बुलन्दशहर का मुगल काल से पहले ऊँचा नगर नाम था। कुछ विद्वानो का अभिमत है कि यह जंचा नगर हो उच्चानागर शाखा से सम्बन्धित है।
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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