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जनतत्र मे धर्म-सस्थाएं
दिखती या समाज व्यवस्था टूटती दिखती, उसे सुधारने और जोडने का काम अपने तप-त्याग-बलिदान द्वारा करता। आप राम-युग को देखिए या कृष्ण-युग को, महावीर-बुद्धयुग को देखिए या गाँधी-युग की गहराइयो मे जाइए। सभी युगो मे आपको भारतीय व्यवस्थानुसार धर्म-सस्थाओ के दोनो अगो का अकुश शासन सचालन तत्र पर मिलेगा। जहाँ कही धर्म सस्था के इन दोनो अगो में से किसी एक या दोनो ने इस महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व से मुख मोडा है, उपेक्षा की है या किसी मे कर्तव्य-च्युति आई है या स्वय मे कोई दोष पनपे है, वहाँ शासन तन्त्र बिगडा है समाज व्यवस्था भी बिगडी है । जनता पर भी उस बिगाड़ की छाया पडी है। रामयुग मे रामचन्द्र जी को दशरथ राजा अपने जीते जी राजगद्दी पर बिठाना चाहते तो स्वय ही निर्णय कर सकते थे, किन्तु उन्होने चातुर्वर्ण्य समाज गुरु वशिष्ठ जी से इस बारे मे प्रेरणा लेनी चाही। वशिष्ठ जी ब्राह्मण सस्था के प्रतिनिधि थे और क्षत्रिय वर्ग पर उनका प्रभुत्व था, वे चाहे जिस ओर निर्णय दे सकते थे, परन्तु उन्होने जिस जन-बल द्वारा उन्हे शासक पर अकुश रखवाना है, उस जनता (महाजन) की राय लेना ठीक समझकर कहा
जो पाहि मत लागे नौका,
तो रघुवरसन कर देहु टीका । इसके अतिरिक्त रामयुग मे जनतालक्षी राजतत्र का ज्वलत उदाहरण है, धोबी का प्रसग । जिसको लेकर श्री रामचन्द्र जी ने अपनी अर्धाङ्गिनी सीता का भी दुखद विरह सहन किया ।
कृष्ण-युग मे जब राजतत्र निरकुश बन रहा था, यानी कस, दुर्योधन, शिशुपाल आदि के अत्याचारो से पीडित था, ब्राह्मण वर्ग राजाश्रित होकर इन अन्यायो-अत्याचारो को चुपचाप देख रहा था, एक तरह से कर्तव्य च्युत बन गया था, तब श्रीकृष्ण महाराज ने गोपालक जनता की शक्ति बढाकर निरकुश राजाओ को पदच्युत किया।
महावीर-बुद्धयुग मे भी ब्राह्मणो का प्रभुत्व क्षत्रिय राजाओ पर काफी था। परन्तु उस प्रभुत्व का उन्होने प्राय दुरुपयोग ही किया, इसलिए श्रमण भगवान महावीर ने और महात्मा बुद्ध ने श्रमण-सस्कृति के उन्नायक बनकर जनता की शक्ति बढाई, ब्राह्मणो और क्षत्रियो को स्वकर्तव्य का भान कराया । यहाँ तक कि जहाँ कई ब्राह्मण कर्तव्यच्युत हो गए थे, वहाँ श्रमणो ने उन्हे श्रमण-सघ द्वारा नीति और धर्म की दृष्टि से मार्ग दर्शन दिया कर्तव्यारूड भी किया ।
भगवान् महावीर के बाद हेमाचार्य, हरिभद्रसूरि, रत्नप्रभसूरि, लोहाचार्य आदि अनेक आचार्यों ने राजतत्र को शुद्ध रखने, नीतिधर्मयुक्त व प्रजालक्षी बनाने के लिए स्वय ने तो राजाओ को प्रतिबोध दिया ही उनके मार्ग दर्शन से बहुत बडा कार्य भी हुआ, साथ ही ब्राह्मण सस्था और जनसस्था का कार्य सम्पन्न कराने के लिए उन्होने ओसवाल, पोरवाल, खडेलवाल, भावसार अग्रवाल आदि धर्म-नीति-सरकारयुक्त असाम्प्रदायिक जातिया भी बनाई, जिनमे से कई वस्तुपाल, तेजपाल, चपाशाह, बाहड, उदयन आदि मन्त्रियो ने ब्राह्मण कार्य कर बताया और भामाशाह, खीमाशाह, भीमाशाह आदि कई पुरुषो ने महाजन (जनसस्था) का कार्य किया। इस प्रकार जनश्रमणो ने और श्रावको ने राजतत्र पर अकुश रखा और
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