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जैन दर्शन की अपूर्व देन स्याद्वाद
स्याद्वाद-जैन दर्शन की विश्व को अपूर्व देन है । जैन दर्शन मे स्याद्वाद का इतना अधिक महत्त्व रहा है, कि जिसके कारण यह जैन दर्शन का पर्यायवाची बन गया है । स्याद्वाद जैन दर्शन का प्राण है, आत्मा है और आत्म-कल्याण का अमोध साधन है। जिससे ज्ञान का विस्तार होता है, निष्ठा निर्मल होती है, संघर्ष, विध्वस और विप्लव नष्ट होकर सत्य और अहिंसा के आधार पर मेल और मिलाप उत्पन्न होता है। स्याद्वाद का सुहावना सिद्धान्त चाहे दर्शन का क्षेत्र हो, चाहे लोक व्यवहार का, वह सर्वत्र समन्वय और समता को सिरजता है । सत्य भगवान के दर्शन कराता है।
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