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गुरुदेव श्री रत्न मुनि स्मृति-ग्रन्थ
प्रार्य-चतुष्टय , आर्य सत्य चार है-(१) दुःख, (२) दुःख समुदय, (३) दुःख निरोध, (४) दुख निरोध की ओर ले जाने वाला मार्ग।
भिक्षुओ । दुख-आर्य सत्य क्या है ?
पैदा होना दुख है. बूढा होना दुख है, मरना दुख है, शोक करना दुख है, रोना-पीटना दुख है, पीडित होना दुःख है, चिन्तित होना दुख है, परेशान होना दुख है, इच्छा की पूर्ति न होना दुख है-थोडे मे कहना हो, तो पांच उपादान स्कन्ध ही दुख है।'
भिक्षुओ | यह जो फिर-फिर जन्म का कारण है, यह जो लोभ तथा राग से युक्त है, यह जो जही-कही मजा लेती है, यह जो तृष्णा है, जैसे-काम-तृष्णा, भव-तृष्ण तथा विभव-तृष्णा-मही दुख के समुदय के बारे मे आर्य सत्य है।'
भिक्षुओ! दुख के निरोध के बारे मे आर्य सत्य क्या है ? उसी तृष्णा से सम्पूर्ण वैराग्य, उस तृष्णा का निरोध, त्याग, परित्याग , उस तृष्णा से मुक्ति, अनासक्ति-यही दुख के विरोध के बारे मे आर्य सत्य है ।
अष्टागिक मार्ग दुख निरोध की ओर ले जाने वाला है, जो कि इस प्रकार है
[ प्रज्ञा ] १- सम्यक् दृष्टि
२-सम्यक् सकल्प [ शील ]
[ समाधि ] ३-सम्यक् वाणी
६-सम्यक् व्यायाम ४-सम्यक् कर्मान्त
७-सम्यक् स्मृति ५-सम्यक् आजीविका
८-सम्यक् समाधि महावीर ने तीन दृष्टिकोण प्रस्तुत किए-१ त्रिपदी, २ रत्नत्रयी ३ स्याद्वाद । । महावीर की इस चिन्तन-धारा ने सत्य को सर्व-सग्राही बना दिया। उसके फलित हुए-सहअस्तित्व और समन्वय । इन तत्वो ने भारतीय मानव को इतना प्रभावित किया कि ये भारतीय-सस्कृति के मूल आधार बन गए।
' दीघनिकाय, पृ० २२ २ वही, पृ० २२ ३ वही, पृ० २२ ४ सयुक्त निकाय, पृ० २२
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