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आगम-साहित्य : एक अनुचिन्तन
मुनि समदर्शी प्रभाकर
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आगम-साहित्य
___ भारतीय-सस्कृति के विचारको एव चिन्तको ने आत्मा परमात्मा एव विश्व के सम्बन्ध मे गहन चिन्तन-मनन और अन्वेपण किया है । और इस खोज मे उन्होंने जो कुछ पाया और आत्म-विकास एव आत्म-शुद्धि के लिए जो यथार्थ मार्ग देखा-समझा उसे अपने शिष्य-प्रशिष्यो को सिखाकर उस ज्ञान धारा को अनवरत प्रवहमान रखने का प्रयत्ल किया । इस ज्ञान परम्परा को भारतीय-सस्कृति मे 'श्रुत या श्रुति' कहते है । 'श्रुत' शब्द का अर्थ है-सुना हुआ और 'श्रुति' शब्द का अभिप्राय है- सुनी हुई।
___ जैन-परम्परा की मान्यता है कि तीर्थकर केवल ज्ञान सप्राप्त करने के बाद प्रवचन देते है और गणधर उनके प्रवचनो को सूत्र रूप से प्रथित करते है और अपने शिष्यों को उसकी वाचना देते है। उनके शिष्य-प्रशिष्य उस श्रुत-साहित्य की वाचना अपने शिष्यो को देते है। इस प्रकार तीर्थकर भगवान के मुख से सश्रुत-वाणी को श्रुत-साहित्य कहते है । इसे आगम, शास्त्र और सूत्र भी कहते है।
वैदिक साहित्य मे 'श्रुत' के स्थान मे 'श्रुति' शब्द का प्रयोग हुआ है। श्रुति का तात्पर्य भी ।। । सुनी हुई बात ही होता है। वैदिक ऋषियो द्वारा रचित ऋचाओ और स्तुतियो को श्रुति कहते है। __ क्योकि ऋषियो के मुख से प्रवहमान वेद-वाणी को सुनकर उनके शिष्यो ने उसे स्मृति मे रखा और अपने 1 शिष्य-प्रशिष्यो को सुनाकर-सिखाकर उसके प्रवाह को सतत गतिमान रखने का प्रयत्न किया।
जैनागमो की तरह बौद्ध-ग्रन्थो मे भी 'सुत्त शब्द मिलता है। उसका अर्थ भी वही है, जो .""सुय-श्रुत' शब्द का है अर्थात् सुना हुआ । इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय-सस्कृति की त्रि-परपरामो मे प्रयुक्त सुय-श्रुत, श्रुति और सुत्त सज्ञा सर्वथा सार्थक है।