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________________ जैन जगत के जन-त्राता श्री रतनलाल जैन कितनो के अवलम्ब बने हो, कितनो को भर अक लगाया ? स्वय गरल पीकर कितना, ओरो को पीयूष पिलाया ? बन कर निर्देशक कितनो को, तुमने भूली राह बताई ? कितनो के तमसावृत मन मे, तुमने जीवन ज्योति जगाई ? श्रद्धेय गुरुदेव श्री रत्नचन्द्र जी महाराज जब सर्व प्रथम आगरा पधारे, तो लोहामडी, लोहामडी न थी, और आगरा आगरा न था । भौतिक दरिद्रता के कुहरे मे मानव की आत्मा कूद पडी थी। पूज्यपाद गुरुदेव ने धार्मिक चेतना का शख फूंककर, जैन धर्म की उषा यहां के क्षितिज पर अभिव्यक्त कर दी । गुरुदेव ने मानव को मानव बनाया और जैनत्व को अमरत्व दिया । प्रात स्मरणीय गुरुदेव अपने युग के प्रखर पडित, कठोर साधक व निर्मल मन के उज्ज्वल प्रतीक थे। गुरुदेव की साधना मे पावनता व उनकी वाणी मे प्रसाद था । समाज के रूढि-बन्धन तोडकर जनजीवन मे शुद्ध धर्म और पवित्र संस्कृति के प्रचार व प्रसार करने वाले थे। गुरुदेव जन-जगत के जन-वाता थे। भूले भटको को सत् पथ पर लाने, पथ प्रदर्शक व निर्देशक थे। वह धर्म के अवतार व मानवता के उद्घोपक थे। न भौतिक मानव उन्हे एक शताब्दी बीत जाने पर भूल सका, न भूल सकेगा । आध्यात्मिक रूप से गुरुदेव चिर अमर है । गुरुदेव श्री रतनचन्द्र जी महाराज का अनुग्रह-भाव यद्यपि सर्वत्र एक-जैसा था, फिर भी लोहामडी क्षेत्र पर उनकी विशेष अनुकम्पा थी। यहां के श्री सघ को अनेक बार और दीर्घ काल तक उनका सान्निध्य मिला । हम और हमारे पूर्वज सौभाग्यशाली थे, जो उनकी सेवा व भक्ति करने का लाभ उठा सके। उन्होने अपने जीवन की सन्ध्या की अन्तिम किरणें आगरे मे ही समेटी । आज का लोहामडी मे निर्मित जैन-भवन पूज्य गुरुदेव के पतित-पावन चरणो से अनेक बार पावन-पवित्र बना। इसी भवन मे सन्थारा करके उन्होने अपनी जीवन लीला सवरण की थी। श्रद्धय के प्रति सासारिक श्रद्धाञ्जलि सूर्य को दीपक दिखाना मात्र है, क्योकि वे दिव्य आत्मा थे और आज जन-जन मे रमकर जिनेन्द्र हो गए - यह है बाग वोही, जो तुमने लगाया। श्री गुरु की कृपा से, है सब सुखारी। .
SR No.010772
Book TitleRatnamuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri, Harishankar Sharma
PublisherGurudev Smruti Granth Samiti
Publication Year1964
Total Pages687
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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