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शताव्दिके उत्तरार्धमें हुआ है । अकलंकके शिष्य प्रभाचन्द्र और विद्यानन्दि नवमी शताव्दिके पूर्वार्धमें हुए होंगे और हरिवंशके कर्ता जिनसेनके समकालीन होंगे । उस समय राष्ट्रकूटवंशीय राजा द्वितीय श्रीवल्लभ था । श्रीवल्लभ कृष्णराजका पुत्र और अमोववघेका दादा था । अतएव विद्यानन्दि और प्रभाचन्द्रका काल शकसंवत् ७६० हो सकता है। इस तरह मान्यखेट नगर - जहा कि भगवान जिनसेनाचार्य तथा गुणभद्रस्वामी रहे हैं- बड़े २ भारी मान्य विद्वानोंका निवासस्थल और भगवती जिनवाणीका क्रीडामन्दिर रह चुका है |
समयविचार |
भगवज्जिनसेनका जन्म जहांतक हमने विचार किया है, शकसंवत् ६७५ ( वि० सं० ८१० ) के लगभग होना चाहिये । क्योंकि जिनसेन नामके एक दूसरे आचार्यने अपने हरिवंशपुराण नामके ग्रन्थमें निम्नलिखित श्लोकॉम उनका और उनके गुरु वीरसेनका उल्लेख किया है:
जितात्मपरलोकस्य कवीनां चक्रवर्तिनः । वीरसेनगुरोः कीर्तिरकलङ्कावभासते ।। ३९ ।। यामिताऽभ्युदये तस्य जिनेन्द्र गुणसंस्तुतिः । स्वामिनो जिनसेनस्य कीतीं संकीर्तियत्यसाँ ॥ ४० ॥
१. यह बात आगे सप्रमाण सिद्ध की जायगी कि, हरिवंश कर्ता जिनसेन आदिपुराणके कर्ता जिनसेनसे जुड़े थे ।
२. किसी २ पुस्तक " पार्श्वजिनेन्द्रगुपसंस्तुतिः " पाठ है ।