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इसलिये आराधनासारकी कथाको भी कोई निरी कपोलकल्पित कहनेका साहस नहीं कर सकता है। ___ भगवान समन्तभद्रके विषयमें आराधनासार और मल्लिपणप्रशस्तिमें नो कुछ लिखा है, उससे अधिक परिचय अभीतक कहीं भी प्राप्त नहीं हुआ । इसलिये हमारे पाठकोंको भी इसीसे सन्तोष करना पड़ेगा। ___ यद्यपि आचार्य महाराजकी जीवनसम्बन्धी वार्ता अन्य किसी अन्यमें नहीं मिलती है तो भी उनकी प्रसिद्ध इतनी अधिक रही है कि प्राय सभी बड़े २ ग्रन्थकारोंने उनका नाम स्मरण किया है और बड़ी भारी, भक्तिसे उनकी स्तुति की है। उस स्तुतिको पढकर और उसके बना नेवाले आचार्योंकी योग्यताका विचार करके अनुमान होता है कि शा यद भगवत्समन्तभद्रका सिंहासन हमारी आचार्यपरम्परामें सबसे ऊंच है । देखिए, थोड़ेसे प्रशंसासूचक श्लोक हम यहांपर उद्धृत करते हैं:
राजाधिराज अमोघवर्षके परमगुरु और प्रख्यात महापुराणके कर श्रीजिनसेनाचार्यने अपने ग्रन्थके आदिमें लिखा है
नमः समन्तभद्राय महते कविवेधले। यद्वचोवज्रपातेन निर्मिन्ना कुमताद्रयाः॥४३॥ कवीनां गमकानां च वादीनां वाग्मिनामपि। ।
यशः सामन्तभद्रीयं मूर्ध्नि चूडामणीयते ॥४४॥ भावार्थ-जिसके वचनरूपी वज्रके आघातसे मिथ्यारूपी पर्वत चूर चूर हो गये, उस कविश्रेष्ठ समन्तभद्रको नमस्कार हो । कविता करनेवाले कवि, कविकी वृत्तिका मर्म शोधनेवाले गमक, वाद करने विजयी होने वाले वादी और मनोरंजक व्याख्यान देनेवाले वाग्मिी