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________________ १८] कविवर वृन्दावन विरचित किंवा शुद्धपयोगमयी, जहँ सुधा बहावत । जुत परिनामिक भाव, नाम तहँ तैसो पावत ॥ जिमि सेत फटिक वश झांकके, झांक वृन्द रंगत गहत । तजि झांक झांक जब झांकियत, तब अटांक सदपद महत ॥३१॥ (१०) . परिणाम वस्तुका स्वभाव है। सोरठा। दरबन विन परिनाम, परनति दरब बिना नहीं । दरब गुनपरजधाम, सहित अस्ति जिनवर कही ॥ ३२ ॥ मनहरण । केई मूढमती कहें द्रव्यमें न गुन होत, द्रव्य और गुननको न्यारो न्यारो थान है । गुनके गहन · कहावै द्रव्य गुनी नाम, - जैसे दंड धारै तब दंडी परधान है ॥ तासौं स्यादवादी कहै यह तो विरोध बात, : विना गुन द्रव्य जैसे खरको विषान है । बिन परिनाम तैने द्रव्य पहिचाने कैसे, परिनामहूको कहा थान विद्यमान है ॥ ३३ ॥ देखो एक गोरस त्रिविधि परिनाम धरै, दूध दघि घृतमें ही ताको विस्तार है । तैसे ही दरब परिनाम विना रहै नाहिं, . परिनामहूको वृन्द दरब अधार है ॥ .
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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