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कविवर वृन्दावन विरचित
किंवा शुद्धपयोगमयी, जहँ सुधा बहावत ।
जुत परिनामिक भाव, नाम तहँ तैसो पावत ॥ जिमि सेत फटिक वश झांकके, झांक वृन्द रंगत गहत । तजि झांक झांक जब झांकियत, तब अटांक सदपद महत ॥३१॥
(१०) . परिणाम वस्तुका स्वभाव है।
सोरठा। दरबन विन परिनाम, परनति दरब बिना नहीं । दरब गुनपरजधाम, सहित अस्ति जिनवर कही ॥ ३२ ॥
मनहरण । केई मूढमती कहें द्रव्यमें न गुन होत,
द्रव्य और गुननको न्यारो न्यारो थान है । गुनके गहन · कहावै द्रव्य गुनी नाम, - जैसे दंड धारै तब दंडी परधान है ॥ तासौं स्यादवादी कहै यह तो विरोध बात,
: विना गुन द्रव्य जैसे खरको विषान है । बिन परिनाम तैने द्रव्य पहिचाने कैसे,
परिनामहूको कहा थान विद्यमान है ॥ ३३ ॥ देखो एक गोरस त्रिविधि परिनाम धरै,
दूध दघि घृतमें ही ताको विस्तार है । तैसे ही दरब परिनाम विना रहै नाहिं, .
परिनामहूको वृन्द दरब अधार है ॥ .