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प्रवचनसार
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ममता अरंभ आदि - हिंसासों रहित होय, .
सोऊ थोरो मुनिहीके जोग ठहराही है ॥ दया ज्ञान संजमको साधक सदीव दीखे,
संजम सरागहीमें जाकी परछाही है। भपवादमारगी मुनिको उपदेश यही, ऐसो परिग्रह तुम राखो दोष नाही है ॥१२०॥
दोहा । यामें हेत यही कहत, पीछी पोथी जानु । तथा कमंडलुको गहन, यह सरधा उर आनु ॥१२१॥ शुभपरनति संजमदिौं, इनको है संसर्ग । . ताहीतें इनकों गहत, अपवादी मुनिवर्ग ॥१२२॥ (२४) गाथा-२२४. उत्सर्ग ही वस्तुधर्म है अपवाद नहीं। भहो भब्यवृन्द जहां मोक्षअभिलाषी मुनि, ..
देहहूको जानत परिग्रह प्रमाना है। ताइसों ममत्तभाव त्यागि आचरन करे, ..
ऐसे सरवज्ञवीतरागने बखाना है। तहां अब कहो और कौन सो परिग्रहको,
गहन करेंगे जहां त्यागहीको वाना है। ऐसो शुद्ध आतमीक पमधर्मरूप उत-सर्गमुनि,
मारगको फहरै निशाना है ॥१२३॥ (२५) गाथा-२२५ अपंवाद कौनसा मेद है? कायाको अकार जथाजात मुनिमुद्रा घर,
एक तो परिग्रह यही कही जिनंद है।